प्याज
श्रृंगार छंद
रोज गिर रहा दीन पर गाज।
हुआ है कितना मँहगा प्याज़।
प्याज़ मिलता है ऊँचे दाम।
नमक मिर्ची से चलता काम।
नहीं अब कटता प्याज़ सलाद।
प्याज़ बिन है सब्जी बेस्वाद।
दाम सुन खट हो गया मिजाज।
हुआ है कितना मँहगा प्याज़।
प्याज़ दे रहा मूँछ पर ताव।
चढ़ा सोने-सा इसका भाव।
कभी खाता था जिसको फोड़।
वही अब दिया है कमर तोड़।
लोन का बढ़ाने लगा ब्याज।
हुआ है कितना मँहगा प्याज़।
प्याज़ हर दिन जेब रहा काट।
दाम कब कम हो देखें बाट।
बने खाना फिर स्वाद लज़ीज़।
रहा है सब को प्याज अजीज़।
बना इस दौर का महाराज।
हुआ है कितना मँहगा प्याज़।
आँख में आँसू कटे बगैैर।
प्याज़ ले रहा सभी की खैर
प्याज़ खाते थे सबके संग।
सिर्फ दिखता अब उसका रंग।
बीच बाजार उतारे लाज।
हुआ है कितना मँहगा प्याज़।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली