पैरों तले जमीन
कालेधन के काज की, खुशियाँ हुई विलीन !
जी अस टी से हिल गई,…पैंरों तले जमीन! !
शासन ने जब नौकरी, ली निर्धन से छीन !
खिसक गई उस दीन के,.पैरों तले जमीन !!
दिखती है जिनके नही,पैरों तले जमीन!
तारे छूने का मगर,….देखें स्वप्न हसीन! !
बातों पर उनकी करें,, कैसे भला यकीन!
पैरो तले जमीन ही,जिनकी पड़ी अधीन! !
रमेश शर्मा.