पैगाम
पैगाम
बहुत दिनों बाद एक कागा मुंडेर पे बैठे हुए ,
किसी के आने का पैगाम लेकर आया।
चिठ्ठी का जमाना बदल गया आज इंटरनेट से संदेश पहुंचाया।
कुछ हमारी सुनते कुछ अपनी कहते हुए ,
जीवन का यही नया अंदाज सिखलाया।
पुराने जमाने में जब छत पे कागा बोले ,
नजर न आये कोई तो कहे यूँ ही कागा,
शायद पितृ पक्ष से कोई पितर बन ग्रास खाने आया।
नई दिशा से उम्मीद की किरणों का उजाला देखते हुए ,
नया सबेरा नई आशाओं से जीवन ज्योति जलाया।
कागा की बोली सुनकर माँ द्वार पर इंतजार करती ,
नजरें गड़ाए देख रही है शायद कोई मेरा अपना आया।
राह तकती कोई न आये कागा को बोलती झूठ बोल रहा है।
ऐसे ही न जाने क्यों रोज मुंडेर पे बैठे हुए ,
आवाजें निकलता पितृ पक्ष का चला गया।
सासु माँ कहती वो शायद कोई पितृ पक्ष में खाने दर्शन देने कागा छत पर रोज आ जाता।
कागा के दर्शन दुर्लभ हो रहे हमें मिलकर उसे बचाना है।
शशिकला व्यास✍️
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