पेरेंटिंग आजकल बहुत ही चैलेंजिंग हो गई है
पेरेंटिंग आजकल बहुत ही चैलेंजिंग हो गई है। एक बच्चे को भी ढंग से पालना, संस्कारित करना, उनके सवालों के जवाब देना….और कई बार ऐसे सवालों के भी जवाब देना जिससे सिचुएशन ही ऑकवर्ड सी हो जाए, बहुत ही मुश्किल लगता है। सबकुछ पूरे उत्साह और लगन से करने के बाद भी कभी कभी थक जाते हैं..हारने से लगते हैं।आजकल पेरेंट्स ऑनलाइन सेशन लेने लगे है कभी सोचा क्या आपके मां बाप ने ऑनलाइन सेशन ले कर आपको पाला।
आश्चर्य होता है, जब सोचती हूँ कि मेरे माता पिता ने हम सब को कैसे पाला पोसा होगा?
हमारे घर मे सब मिलकर 6 बच्चे होते थे, चाचा चाची के बच्चे इत्यादि।जब किसी को बुलाया जाता था, तो जिसकी तरफ देखा जाए, उसे जाना होता था…क्योंकि कभी भी किसी का नाम सही नहीं लिया जाता था ! नाम चाहे किसी का भी लिया जाए, पर हर बच्चे का संवेधानिक कर्तव्य होता था कि किसी के भी नाम पर दौड़ लगा दे। और जो भी काम है वो बिना किसी इफ एन्ड बट के करे।
खैर वो समय गुज़र गया। आज सभी भाई बहन अपने अपने क्षेत्र में बेहतरीन कर रहे हैं।
पर अब जब खुद को उनकी जगह रखती हूँ तो लगता है कि हम कितना जूझ रहे हैं। चाइल्ड साइक्लोजी पर नित नई किताबें आ रही हैं। हमें अपने ही बच्चों को पालने का तरीका कोई और बता रहा है।
हम लोग जब पढ़ते थे तो टीचर्स अगला चैप्टर तब तक नहीं बदलते थे, जब तक कि पहला समझ न आ जाए। पहाड़े मुँह जबानी याद होना गणित सीखने की पहली शर्त हुआ करती थी। टीचर्स उतनी ही मेहनत करते थे जितनी कि हम।
आजकल देख रही हूँ कि आधुनिक बनने की होड़ में, सबको हड़बड़ाहट है। सबको जल्दी है! टीचर्स को भी धैर्य नहीं है, न ही पेरेंट्स को।
फीस चाहे कई गुना बढ़ गई है, पर बहुत ही कम टीचर होते हैं जो बच्चों को पूरी लगन और मेहनत से पढ़ाते हैं।
माता पिता भी टीचर्स पर इस कदर हावी रहते हैं कि क्या कहा जाए? बच्चे की किसी भी गलती पर तो उन्हें फटकारा भी नहीं जा सकता, मारना तो बहुत दूर की बात है।
विपरीत परिस्थितियों में भी बच्चों को बहुत ज्यादा पुचकारने के कारण बच्चो का स्वयं पर से नियंत्रण और आत्मविश्वास भी कम होता जा रहा है।
पर यह सब करना भी एकल परिवारों और बड़े शहरों की मजबूरी ही है।
बच्चों के प्रति अपना प्यार जताइए. आपके बच्चे से बहुत प्यार करने जैसी कोई बात नहीं है. बच्चों से प्यार करना उन्हें बिगाड़ना नहीं है. कई पेरेंट्स प्यार के नाम पर बच्चों को- भौतिक चीजें, उदारता, कम उम्मीदें और बहुत अधिक सुरक्षात्मकता देते हैं. जब आप बच्चों को प्यार की जगह ये चीजें देते हैं तो वास्तविकता में आपका बच्चा बिगड़ रहा होता है. बच्चो के मुंह से निकला नहीं और माता पिता ने पूरा किया,सब कुछ धन से नही प्राप्त होता है,होता है अच्छे संस्कारों से।मुझे मेरे बच्चो पर गर्व है अपनी सूझ बूझ से आप भी गर्व करे।
बच्चे को प्यार देना उतना ही आसान है जितना कि उसे गले लगाना, बच्चों के साथ समय बिताना और हर दिन उनकी बातों को पूरी गंभीरता के साथ सुनना.
अच्छी बात यह है, हालांकि परवरिश काफी कठिन काम है, यह बहुत फायदेमंद भी है. बुरा हिस्सा है कि बहुत कड़ी और लंबी मेहनत के बार अच्छी परवरिश रंग लाती है जोकि किसी पुरस्कार की तरह होती है. लेकिन अगर हम शुरू से ही अपनी पूरी मेहनत से इसमें लगें तो हम अंततः पुरस्कार वापस पा लेंगे और अफसोस करने के लिए कुछ भी नहीं होगा.
बच्चे अपने क्षेत्र में सफल एव सन्तुष्ट रहे और हम सभी अपने माता पिता की तरह सफल हों इस चैलेंज में…बस यही हमारी कामना रहती है। और अब जाकर अपने माता पिता की हर बात और हर सीख याद आती है
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दीपाली कालरा
published edition december 2021