तरु के दोहे
पेड़ कहे लकड़हार से तू क्यों काटे मोए
एक दिन ऎसा आएगा मे जलाऊंगा तोए ।।
मत लगाओ रे मेरे भैया, मन को कछु ना होए
ऎसो तो मत करो रे भैया, जासे हानि होए ।।
काटे से कछु मिले न भैया, न कोई राजा होए
लगाए से सुख मिलता रे भैया, हवा शुद्ध सब होए।।
पेड़ है बेबस हारा ज्यो लागे त्यो मोड़
बो भी इंसान है भैया काहे की ये होड़ ।।
आवत पीढ़ी ” शिवी ” नव नित हो जाए
दिल से लगाओ रे मेरे भैया पेड़ो की जा माए ।।