पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी
अजमेर के राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरी देवी के यहाँ सन 1149 में एक पुत्र पैदा हुआ। जो आगे चलकर भारतीय इतिहास में महान हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसे दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक के रूप मे भी जाना जाता है।
दिल्ली की राजगद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू शासक और भारत के महान वीर योद्धाओं में शुमार पृथ्वीराज चौहान का नाम कौन नहीं जानता। एक ऐसा वीर योद्धा जिसने अपने बचपन में ही शेर का जबड़ा फाड़ डाला था और जिसने अपनी दोनों आंखें खो देने के बावजूद भी शब्द भेदी बाण से भरी सभा में मोहम्मद गौरी को मृत्यु का रास्ता दिखा दिया था।
दिल्ली की सत्ता संभालने के साथ हुआ था चौहान को संयोगिता से प्यार
बात उन दिनों की है जब पृथ्वीराज चौहान अपने नाना और दिल्ली के सम्राट महाराजा अनंगपाल की मृत्यु के बाद दिल्ली की राज गद्दी पर बैठे। गौरतलब है कि महाराजा अनंगपाल को कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने दामाद अजमेर के महाराज और पृथ्वीराज चौहाण के पिता सोमेश्वर सिंह चौहान से आग्रह किया कि वे पृथ्वीराज को दिल्ली का युवराज घोषित करने की अनुमति प्रदान करें। महाराजा सोमेश्वर सिंह ने सहमति जता दी और पृथ्वीराज को दिल्ली का युवराज घोषित किया गया, काफी राजनीतिक संघर्षों के बाद पृथ्वीराज दिल्ली के सम्राट बने। दिल्ली की सत्ता संभालने के साथ ही पृथ्वीराज को कन्नौज के महाराज जयचंद की पुत्री संयोगिता भा गई।
उस समय कन्नौज में महाराज जयचंद्र का राज था। उनकी एक खूबसूरत राजकुमारी थी जिसका नाम संयोगिता था। जयचंद्र पृथ्वीराज की यश वृद्धि से ईर्ष्या का भाव रखा करते थे। एक दिन कन्नौज में एक चित्रकार पन्नाराय आया जिसके पास दुनिया के महारथियों के चित्र थे और उन्हीं में एक चित्र था दिल्ली के युवा सम्राट पृथ्वीराज चौहान का। जब कन्नौज की लड़कियों ने पृथ्वीराज के चित्र को देखा तो वे देखते ही रह गईं। सभी युवतियां उनकी सुन्दरता का बखान करते नहीं थक रहीं थीं। पृथ्वीराज के तारीफ की ये बातें संयोगिता के कानों तक पहुंची और वो पृथ्वीराज के उस चित्र को देखने के लिए लालायित हो उठीं।
संयोगिता अपनी सहेलियों के साथ उस चित्रकार के पास पहुंची और चित्र दिखाने को कहा। चित्र देख पहली ही नजर में संयोगिता ने अपना सर्वस्व पृथ्वीराज को दे दिया, लेकिन दोनों का मिलन इतना सहज न था। महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान में कट्टर दुश्मनी थी। इधर चित्रकार ने दिल्ली पहुंचकर पृथ्वीराज से भेट की और राजकुमारी संयोगिता का एक चित्र बनाकर उन्हें दिखाया जिसे देखकर पृथ्वीराज के मन में भी संयोगिता के लिए प्रेम उमड़ पड़ा। उन्हीं दिनों महाराजा जयचंद्र ने संयोगिता के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया। इसमें विभिन्न राज्यों के राजकुमारों और महाराजाओं को आमंत्रित किया लेकिन ईर्ष्या वश पृथ्वीराज को इस स्वंयवर के लिए आमंत्रण नहीं भेजा।
राजकुमारी के पिता ने चौहान का अपमान करने के उद्देश्य से स्वयंवर में उनकी एक मूर्ति को द्वारपाल की जगह खड़ा कर दिया। राजकुमारी संयोगिता जब वर माला लिए सभा में आईं तो उन्हें अपने पसंद का वर (पृथ्वीराज चौहान) कहीं नजर नहीं आए। इसी समय उनकी नजर द्वारपाल की जगह रखी पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ी और उन्होंने आगे बढ़कर वरमाला उस मूर्ति के गले में डाल दी। वास्तव में जिस समय राजकुमारी ने मूर्ति में वरमाला डालना चाहा ठीक उसी समय पृथ्वीराज स्वयं आकर खड़े हो गए और माला उनके गले में पड़ गई। संयोगिता द्वारा पृथ्वीराज के गले में वरमाला डालते देख पिता जयचंद्र आग बबूला हो गए। वह तलवार लेकर संयोगिता को मारने के लिए आगे आए, लेकिन इससे पहले की वो संयोगिता तक पहुंचे पृथ्वीराज संयोगिता को अपने साथ लेकर वहां से निकल पड़े।
स्वयंवर से राजकुमारी के उठाने के बाद पृथ्वीराज दिल्ली के लिये रवाना हो गए। आगे जयचंद ने पृथ्वीराज से बदला लेने के उद्देश्य से मोहम्मद गौरी से मित्रता की और दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को 16 बार परास्त किया लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने सहर्दयता का परिचय देते हुए मोहम्मद गौरी को हर बार जीवित छोड़ दिया। राजा जयचन्द ने गद्दारी करते हुए मोहम्मद गोरी को सैन्य मदद दी और इसी वजह से मोहम्मद गौरी की ताकत दोगुनी हो गयी तथा 17वी बार के युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गोरी से द्वारा पराजित होने पर पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गोरी के सैनिको द्वारा उन्हें बंदी बना लिया गया एवं उनकी आंखें गरम सलाखों से जला दी गईं। इसके साथ अलग-अलग तरह की यातनाए भी दी गई।
अंतत: मो.गोरी ने पृथ्वीराज को मारने का फैसला किया तभी महा-कवि चंदरबरदाई ने मोहम्मद गोरी तक पृथ्वीराज के एक कला के बारे में बताया। चंदरबरदाई जो कि एक कवि और खास दोस्त था पृथ्वीराज चौहान का। उन्होंने बताया कि चौहाण को शब्द भेदी बाण छोड़ने की काला मे महारत हासिल है। यह बात सुन मोहम्मद गोरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का आदेश दिया। प्रदर्शन के दौरान गोरी के “शाबास आरंभ करो” लफ्ज के उद्घोष के साथ ही भरी महफिल में चंदरबरदाई ने एक दोहे द्वारा पृथ्वीराज को मोहम्मद गोरी के बैठने के स्थान का संकेत दिया जो इस प्रकार है-
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।”
तभी अचूक शब्दभेदी बाण से पृथ्वीराज ने गोरी को मार गिराया। साथ ही दुश्मनों के हाथों मरने से बचने के लिए चंदरबरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे का वध कर दिया। जब संयोगिता को इस बात की जानकारी मिली तो वह एक वीरांगना की भांति सती हो गई। इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में आज भी यह प्रेमकहानी अमर है।
#ravisinghbharati
#rs7632647
#रविलेख