पूर्ववत
पूर्ववत (लघुकथा)
सड़क के बीच में कुतिया का एक पिल्ला, किसी गाड़ी वाले द्वारा बुरी तरह रौंद दिया गया। जिसकी मौके पर मृत्यु हो गई।
कुतिया हर आती-जाती गाड़ी पर भौंक रही थी। कहती सी प्रतीत हो रही थी। तुम खूनी हो, तुम संवेदनहीन हो, तुम क्रूर हो, तुम खुंखार हो, तुम अप्राकृतिक हो, तुम नहीं जानते एक मां की पीड़ा, तुम नहीं जानते मां होना।
गाड़ी और गाड़ीवान, कुतिया की पीड़ा बिना महसूस किए ही पूर्ववत आ रहे थे, जा रहे थे। शिवाय कुतिया के, सब कुछ पूर्ववत था।
-विनोद सिल्ला