कवि गुरू रबीन्द्रनाथ टैगोर
पूरब से सूरज निखरता ,
चारो दिशा को जगमाता,
आंनद हो चाहे दुख हो,
टैगोर की कविताएं संग है ।
बंगला के स्वर्णिम अतीत में छिपा है,
टैगोर की रचनाओं में अमिट छाप है।
मिलता नई अनुभूति ,
छिपा गौरव का मान,
टैगोर की रचनाओं,
कबीगुरु अमर हैं।
उनके शब्दों की मधुरता को,
शब्दों के शिल्पकार को,
टैगोर की कविताएं को,
सत सत नमन करूं।