*पुस्तक समीक्षा*
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम: आओ खुशी तलाश करें (गजल संग्रह)
कवि: ओंकार सिंह ओंकार
1-बी/24 1, बुद्धि विहार ,आवास विकास कॉलोनी मझोला, दिल्ली रोड, मुरादाबाद 244103 उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 50 5 734
प्रथम संस्करण: 2022
मूल्य 250 रुपए
प्रकाशक: गुंजन प्रकाशन
सी- 13 0, हिमगिरी कॉलोनी, कॉंठ रोड, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 244001
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समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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ओंकार सिंह ओंकार की 84 गजलों का संग्रह है आओ खुशी तलाश करें ।
अपने शीर्षक के अनुरूप कवि जीवन की आपाधापी के बीच में से कुछ सुकून के पल तलाशने के लिए निकला है। इस समय व्यक्ति, समाज और संसार भयंकर रूप से त्रासदी का शिकार है। हर आदमी किसी न किसी उलझन में फॅंसा हुआ है। किसी को बेरोजगारी सता रही है तो कोई घर गृहस्थी की दिक्कतों का सामना कर रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर अलगाववाद और सांप्रदायिकता का खेल अलग चल रहा है। विश्व शांति कोसों दूर है। चारों तरफ षड्यंत्र एक जाल की तरह फैले हुए हैं। कब कोई अपना अस्तित्व समाप्त करके इस जालसाजी का शिकार हो जाए, कहा नहीं जा सकता।
ऐसे प्रतिकूल वातावरण में कवि संसार में प्यार ढूंढने निकला है। सबसे प्रेम का व्यवहार चाहता है और प्रेम की ही सीख दे रहा है। उसकी गजलों में जीवन की नश्वरता का संदेश है तो एकता का स्वर भी है । जनहित का कार्य करने में जीवन का असली आनंद छिपा है, यह बात भी उसने बताई है। अखबारों को देखकर सभी का दुखी होना स्वाभाविक है क्योंकि यह नकारात्मक समाचारों से भरे होते हैं। कवि को भी यह सब अच्छा नहीं लगता।
समय हाथों से फिसलता जा रहा है। इसलिए एक स्थान पर उसने समय के सम्मान की बात लिखी है। शेर इस प्रकार है:-
करो सदा सम्मान समय का, यह तो एक परिंदा है/ अगर परिंदा उड़ जाएगा कभी न वापस आएगा
(प्रष्ठ 33)
नश्वर जीवन के संबंध में हजारों लोगों ने अपनी बातें कही हैं ।कवि ओंकार सिंह ओंकार के शेर भी इस विचार-परिधि की चेतना से जूझते हुए बहुत अच्छी तरह उलझझे हैं । वह लिखते हैं:-
कब तलक है दाना पानी, ये पता कुछ भी नहीं/ जिंदगी से मौत का तो फासला कुछ भी नहीं
(पृष्ठ 34)
जीवन की नश्वरता पर प्रकाश डालना ही पर्याप्त नहीं होता। असली बात जीवन की सार्थकता में निहित होती है। कवि ने लोकमंगल के लिए जीवन जीने को असली जिंदगी बताया है और उसी को इतिहास के प्रष्ठों पर स्थान दिया है। एक शेर देखिए :-
इतिहास में उसी का हुआ नाम है अमर/ जनहित में जिसने काम बड़ा कर दिखा दिया
(पृष्ठ 79)
गजल संग्रह में एक दोहा गीतिका भी है। इसका प्रारंभिक दोहा विपरीत परिस्थितियों में भी मनुष्य के जीवन में आशा का संचार कर रहा है। दोहा इस प्रकार है:-
टिक पाती कोई नहीं, दुख की काली रात/ॲंधियारे को चीरकर आता सुखद प्रभात
(प्रष्ठ 134)
गजल संग्रह की भाषा हिंदी उर्दू मिली-जुली है। कुछ स्थानों पर जब कवि को यह लगा कि गजल में उर्दू के कठिन शब्दों का प्रयोग हो गया है तो उसने इसका हिंदी अर्थ भी पाद-टिप्पणी में देना उचित समझा है। इस दृष्टि से एक शेर उद्धृत किए जाने योग्य है:-
लोग जो जरपरस्त हैं जिनका शियार है सितम/ उनकी ही साजिशों से अब मुल्क में इंतशार है (प्रष्ठ 112)
जरपरस्त = पूंजीवादी
शियार = फितरत, आदत
इंतशार = बिखराव
कुल मिलाकर ओंकार सिंह ओंकार की गजलें हमें एक अच्छा संसार निर्मित करने के लिए प्रेरित करती हैं। पढ़ने के बाद कुछ न कुछ पाठक अवश्य गुनगुनाएंगे। छपाई अच्छी है। कवर आकर्षित करता है।