Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Jun 2024 · 5 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम: अक्षर विरासत
लेखक: हरिशंकर शर्मा
प्लॉट नंबर 213, 10 वीं स्कीम, गोपालपुरा बाईपास, निकट शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, जयपुर 302018 राजस्थान
मोबाइल 9461046594 एवं 889 0 589 842
प्रकाशक: दीपक प्रकाशन
930-31, गज कृपा कॉंप्लेक्स, भारतीय स्टेट बैंक के पीछे, चौड़ा रास्ता, जयपुर 302003
प्रथम संस्करण: 2024
विधा: आलेख
मूल्य ₹ 375
कुल पृष्ठ संख्या: 119
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
_________________________
मुरादाबाद के शालिग्राम वैश्य का शुकसागर (1910 ईसवी संस्करण) बरेली के हरि शंकर शर्मा के संग्रह में सुरक्षित है

अक्षर विरासत में लेखक हरि शंकर शर्मा के चौदह लेख हैं। सभी लेख लेखक की शोध प्रवृत्ति को दर्शाने वाले हैं। प्राचीनता के प्रति लेखक का एक विशेष आकर्षण है। उसे प्राचीन वस्तुएं सहेज कर रखने का शौक है। उनमें निहित विशेषताओं का अध्ययन वह करना चाहता है तथा इन सब के आलोक में भविष्य की सार्थक दिशा तय करने का उसका आग्रह है।
आजकल पुरानी चीजों को सहेज कर कौन रखे ? वह तो रद्दी के भाव बेच दी जाती हैं । लेखकों के अपने परिवारों तक में उनकी पांडुलिपियॉं अथवा प्रकाशित पुस्तकें कब कबाड़ी वाले के पास चली गईं अथवा दीमक की भेंट चढ़ गईं, कौन जान पाता है ? हरिशंकर शर्मा के हाथ में पुरानी चीज आते ही वह उनका मूल्य समझ जाते हैं। जैसे हीरे की परख जौहरी को होती है, बिल्कुल वही स्थिति आप समझ लीजिए।

एक दिन बरेली (उत्तर प्रदेश) में वह ठेले से चने खरीद रहे थे। चने वाले ने रद्दी के कागज पर उन्हें चने रखकर दिए और कहने लगा -“मेरा चना बना आला, इसको खाते लक्ष्मण लाला, चना जोर गरम बाबू” । जिस रद्दी के पृष्ठ पर चने रखकर दिए गए थे, वह प्रष्ठ हाथ में आते ही लेखक उन प्रष्ठों का मूल्य समझ गए। तत्काल चने वाले से रद्दी के सारे प्रष्ठ खरीद लिए। वह संवत 1833 की रामचरितमानस की प्राचीन पांडुलिपि निकली। हस्तलिखित ग्रंथ 12 इंच लंबा और 6 इंच चौड़ा आकार का है। अगर लेखक रद्दी के ढेर में उस गुदड़ी के लाल को न पहचान पाते, तब वह तो चने की पुड़िया बनाने में ही खर्च हो गया होता।

रामचरितमानस की 16वीं/ 17वीं शताब्दी की एक चित्रित पांडुलिपि ईश्वर चंद्र शर्मा के संग्रह में है। यह उनकी पारिवारिक धरोहर है। पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार में सबसे बड़े पुत्र को प्राप्त होती रही है। लेखक ने प्राचीन धरोहरों को सहेज कर रखने की ईश्वर चंद्र शर्मा की प्रवृत्ति की प्रशंसा करते हुए इसे अपनी पुस्तक के प्रथम आलेख का विषय बनाया है।

बनारस में रहते समय रद्दी बेचने वालों के पास लेखक को हस्तलिखित पांडुलिपि लल्लू जी की कीर्तनियॉं मिलीं । यह बृजमोहन दास द्वारा लिखित हैं। संवत 1828 की रचनाएं हैं। भक्ति से भरे 1700 पद हैं। 14 गुणा 28 सेंटीमीटर आकार में काले रंग से लिखे गए हैं। लेखक ने सहेज कर रख लिये। यह भी पुस्तक के एक आलेख का शीर्षक है ।

बनारस के ही एक कबाड़ी वाले से लेखक को आगरा से प्रकाशित सन 1916 की कृति बारहमासी की कई पुस्तकें मिली। कृष्ण चंद्र जी का बारहमासा, रामचंद्र जी का बारहमासा, अला बख्श का बारहमासा इन कृतियों के नाम हैं । उनके आवरण-चित्र भी पुस्तक में दिए गए हैं। इनमें विरह की पीड़ा का वर्णन है। भक्ति भावना से भी यह बारहमासा ओतप्रोत हैं।

माथुर वैश्य हैं लाला शालिग्राम वैश्य। मोहल्ला दीनदारपुरा मुरादाबाद जनपद के रहने वाले थे। उनकी कृति शुक सागर का सन् 1910 ईसवी संस्करण बरेली के लेखक हरिशंकर शर्मा के पास सुरक्षित है। सन् 1890 में मुंबई के श्री वेंकटेश्वर प्रेस से प्रकाशित हुई थी। लाला शालिग्राम के बारे में लेखक ने बताया है कि यह सनातनी विचारों के थे। हिंदी संस्कृत के विद्वान थे। पंडित राधेश्याम कथावाचक ने उनकी प्रशंसा की थी। शालिग्राम वैश्य का शुकसागर 1551 प्रष्ठों का है। इसमें श्रीमद्भागवत का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद है।

एक पुस्तक का नाम हस्तामलिक है। यह संवत 1931 में प्रकाशित हुई। आकार 11 गुणा 14 सेंटीमीटर है। चित्र कोई नहीं है। केवल 11 प्रष्ठ की पुस्तक है। लेखक ने पुस्तक के संबंध में एक लेख प्रकाशित करते हुए टिप्पणी लिखी है -“ग्रंथ में जीव जगत ब्रह्म की परिभाषा है। संवाद शैली के इस लघु ग्रंथ का ऐतिहासिक महत्व है। संपूर्ण ग्रंथ मेरे पास सुरक्षित है।”

बनारस में रद्दी वाले से लेखक को अवतार चरित्र भाषा नामक पुस्तक मिली थी। इसमें चित्र भी अंकित हैं । 24 अवतारों का वर्णन है। प्रकाशन 1875 ई का है। अवतार चरित्र भाषा का आवरण पृष्ठ लेखक ने पुस्तक में प्रकाशित किया है।

एक हस्तलिखित पुस्तक परमार्थ जकरी है। इसमें 70 पृष्ठ हैं। संवत 1956 में बिहार के मोतीलाल चौधरी (वनिक) ने इसे लिखा है। पांडुलिपि का आकार 21 गुणा 18 सेंटीमीटर है। पुस्तक में इस हस्तलिखित ग्रंथ की समीक्षा जैन परिव्राजक का आत्मकथ्य शीर्षक से लिखी गयी है।

बरेली में टीबरी नाथ मंदिर प्रसिद्ध है। जब मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ तब पदार्थ विद्या सार नामा ग्रंथ: प्राप्त हुआ था। लेखक ने इसकी भी समीक्षा की है। यह संवत 1936 की कृति है। गुरु शिष्य संवाद शैली है। पर्यावरण संरक्षण इस पुस्तक का मूल उद्देश्य है। ग्रंथकार का नाम अज्ञात है।

आयुर्वेद पर भी एक लेख पुस्तक में मिलता है। शीर्षक है कविराज का राज: वैद्यामृतसार । यह आगरा (उत्तर प्रदेश) में मतवआ स्थान पर मच्छू खॉं के द्वारा कम्बह टोले में सन् 1873 ई को प्रकाशित हुआ था। लेखक ने पुस्तक के मुखपृष्ठ का चित्र अपनी पुस्तक में प्रकाशित किया है। इस पुस्तक में आयुर्वेद के फार्मूले कविताओं के माध्यम से व्यक्त किए गए हैं । अर्थात वैद्यामृतसार का लेखक आयुर्वेद का ज्ञाता और काव्य का मर्मज्ञ; दोनों गुण रखता है।

पुस्तक में उन महानुभावों के कार्यों को भी लेखक ने प्रणाम किया है जो प्राचीन इतिहास को धरोहर के रूप में सॅंजोए हुए हैं। इन में सिक्कों को रखने वाले एस.के. दास गुप्ता का काम लेखक ने अपने एक संपूर्ण आलेख में वर्णित किया है। आप बरेली आकाशवाणी में सहायक अभियंता पद पर कार्यरत हैं ।

पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्रा के संग्रहालय चंदौसी (उत्तर प्रदेश) का वर्णन भी पुस्तक के एक आलेख के रूप में किया गया है। यह नौ शोकेसों में सुरक्षित हैं। शोधकर्ता इनका अध्ययन कर सकते हैं। वर्तमान में यह कार्य सुरेंद्र मोहन मिश्र के पुत्र अतुल मिश्र के प्रयासों से संचालित है।

कुल मिलाकर ‘अक्षर विरासत’ भूले बिसरे इतिहास के प्रष्ठों को स्मरण करने का उपक्रम है। बहुतों की नजर में इन सारे कार्यो का कोई महत्व नहीं है। लेकिन चाहे पुस्तकें हों अथवा प्रकाशित पत्रिकाएं हों, सिक्के और अन्य पुरानी वस्तुएं हों; इन सबसे एक इतिहास जीती जागती शक्ल में हमारे सामने आकर खड़ा हो जाता है। इतिहास के उस कालखंड में विचरण करना भला कौन नहीं चाहेगा ? हां, उसका संरक्षण सब लोग नहीं कर सकते। इसके लिए तो केवल हरि शंकर शर्मा जैसे व्यक्ति ही सामने आ पाएंगे जो दशकों तक इसी दिशा में माथा-पच्ची करते रहे हैं, और अभी भी कर रहे हैं। विशेषता यह भी है कि लेखक ने केवल बहुमूल्य वस्तुओं का संग्रह ही नहीं किया है। उसने उनका गहराई में जाकर अध्ययन भी किया है और पाठकों तक उस अध्ययन को पुस्तक-रूप में पहुंचाया भी है।

119 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
कविता: मेरी अभिलाषा- उपवन बनना चाहता हूं।
कविता: मेरी अभिलाषा- उपवन बनना चाहता हूं।
Rajesh Kumar Arjun
उसको ख़ुद से ही ये गिला होगा ।
उसको ख़ुद से ही ये गिला होगा ।
Neelam Sharma
उसे लगता है कि
उसे लगता है कि
Keshav kishor Kumar
हम भारत के रहने वाले, हमारा भारत महान है।
हम भारत के रहने वाले, हमारा भारत महान है।
जय लगन कुमार हैप्पी
दवा दारू में उनने, जमकर भ्रष्टाचार किया
दवा दारू में उनने, जमकर भ्रष्टाचार किया
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
इन समंदर का तसव्वुर भी क्या ख़ूब होता है,
इन समंदर का तसव्वुर भी क्या ख़ूब होता है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
विरक्ती
विरक्ती
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
वो क्या देंगे साथ है,
वो क्या देंगे साथ है,
sushil sarna
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
DR ARUN KUMAR SHASTRI
#आदरांजलि-
#आदरांजलि-
*प्रणय*
पीर
पीर
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
नये साल के नये हिसाब
नये साल के नये हिसाब
Preeti Sharma Aseem
57...Mut  qaarib musamman mahzuuf
57...Mut qaarib musamman mahzuuf
sushil yadav
खिड़कियां हवा और प्रकाश को खींचने की एक सुगम यंत्र है।
खिड़कियां हवा और प्रकाश को खींचने की एक सुगम यंत्र है।
Rj Anand Prajapati
हम खुद से प्यार करते हैं
हम खुद से प्यार करते हैं
ruby kumari
"अनमोल"
Dr. Kishan tandon kranti
🤔🤔🤔समाज 🤔🤔🤔
🤔🤔🤔समाज 🤔🤔🤔
Slok maurya "umang"
लोकसभा बसंती चोला,
लोकसभा बसंती चोला,
SPK Sachin Lodhi
अच्छे थे जब हम तन्हा थे, तब ये गम तो नहीं थे
अच्छे थे जब हम तन्हा थे, तब ये गम तो नहीं थे
gurudeenverma198
शापित है यह जीवन अपना।
शापित है यह जीवन अपना।
Arvind trivedi
“Your work is going to fill a large part of your life, and t
“Your work is going to fill a large part of your life, and t
पूर्वार्थ
बात तो सच है सौ आने कि साथ नहीं ये जाएगी
बात तो सच है सौ आने कि साथ नहीं ये जाएगी
Shweta Soni
कल आंखों मे आशाओं का पानी लेकर सभी घर को लौटे है,
कल आंखों मे आशाओं का पानी लेकर सभी घर को लौटे है,
manjula chauhan
आई होली आई होली
आई होली आई होली
VINOD CHAUHAN
2738. *पूर्णिका*
2738. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
भारत में सबसे बड़ा व्यापार धर्म का है
भारत में सबसे बड़ा व्यापार धर्म का है
शेखर सिंह
हर बार धोखे से धोखे के लिये हम तैयार है
हर बार धोखे से धोखे के लिये हम तैयार है
manisha
मौन समझते हो
मौन समझते हो
मधुसूदन गौतम
अनकहा
अनकहा
Madhu Shah
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Loading...