Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Jun 2024 · 7 min read

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम: पंडित राधेश्याम कथावाचक की गजलें
संपादक: हरिशंकर शर्मा
प्लॉट नंबर 213, 10 बी स्कीम, गोपालपुरा बायपास, निकट शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, जयपुर 302018 राजस्थान
मोबाइल 9461046 594
व्हाट्सएप नंबर 889 058 9842 तथा 9257 446828
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन सी 46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर 302006
प्रथम संस्करण: 2024
मूल्य ₹200
—————————————
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
————————————
पंडित राधेश्याम कथावाचक (1890 – 1963) को प्रसिद्धि तो उनके द्वारा रचित ‘राधेश्याम रामायण’ से ही मिली है। लेकिन जैसा कि ज्यादातर साहित्यकारों के जीवन में यह बात घटित होती है कि वह अपनी प्रसिद्ध और लोकप्रिय विधा से हटकर भी बहुत कुछ सृजन करते रहते हैं।

कथावाचक जी ने भी कवि होने के नाते गजलें लिखीं। गजल की संरचना को जाना और समय-समय पर एक से बढ़कर एक गजल वह रचते गए। यह गजलें भी उनके कथावाचन का ही एक हिस्सा जैसी बन गईं। कुछ गजलें रामकथा का अभिन्न अंग कहलाईं। कुछ गजलें श्रोता-समूह के सम्मुख उन्होंने सुनाईं। कुछ गजलें ऐसी भी हैं जो किसी कार्यक्रम विशेष के लिए लिखी गईं । कुछ छुटपुट कार्यक्रमों को भी आपने गजलों के माध्यम से अभिव्यक्ति दी । राधेश्याम रामायण से हटकर किया गया यह कार्य आपकी बहुमुखी प्रतिभा को उजागर करता है। कुछ ऐसी भी गजलें रहीं जो भजन के नाम से प्रकाश में आईं। लेकिन शीर्षक चाहे जो हो, अगर गजल की संरचना है तो वह गजल ही कहलाएगी।
🍃🍃
रदीफ का अनूठा रंग

पंडित राधेश्याम कथावाचक जी उन व्यक्तियों में से थे जिन्होंने अपने श्रोताओं के साथ सीधा संवाद किया। श्रोता उनके कथावाचन में रम गए। वक्ता और श्रोता के बीच की दूरी समाप्त हो गई। तात्पर्य यह है कि कथावाचक जी को यह कला खूब आती थी कि श्रोताओं से तादात्म्य कैसे स्थापित किया जाए।
जब आपने गजलें लिखी तो उनमें श्रोताओं को अपने साथ शामिल करने की आपकी खूबी ने गजलों को एक अलग ही रंग दे दिया। काफिया मिलाना तो सभी जानते हैं। रदीफ का प्रयोग गजल की विशेषता कहलाती है। उस से गजल का सौंदर्य बढ़ जाता है।
गजल में रदीफ का प्रयोग कथावाचक जी ने श्रोताओं को काव्य पाठ के साथ जोड़ने के लिए किया। इस तरह कथावाचक जी ने गजल को भी सिर्फ अपने तक सीमित नहीं रखा, उसका कुछ अंश पाठकों को भी दोहराने के लिए सौंप दिया। एक ग़ज़ल में अहाहाहा ओहोहोहो शब्दावली का प्रयोग रदीफ के रूप में करते हुए कथावाचक जी अपने श्रोताओं को अपने रंग में रॅंगने का मानो निमंत्रण दे रहे हैं। हम महसूस कर सकते हैं कि कथावाचक जी इस लंबी विशिष्ट रदीफ वाली गजल को सुनाते समय अपने श्रोताओं को रदीफ की शब्दावली दोहराने का निमंत्रण अवश्य देते होंगे और निश्चित रूप से इस उपक्रम से सभागार में एक शानदार वातावरण बन जाता होगा। गजल धार्मिक है। पूरी तरह प्रचलित धार्मिक शब्दावली से ओतप्रोत है। हिंदी की गजल है। प्रवाह कहीं भी शिथिल नहीं पड़ रहा है। यह एक प्रकार से गजल-लेखन में रदीफ को भजन की तरह इस्तेमाल करके नई प्रकार की झंकार पैदा करना कथावाचक जी का अनूठा कार्य है। आइए, संपूर्ण गजल का आनंद लिया जाए:-

सुनो ऐ सांवरे मोहन, अहाहाहा, ओहोहोहो
ग़ज़ब है तुममें बांकापन, अहाहाहा, ओहोहोहो

मुकुट और पाग टेढ़ी है तो लब पै टेढ़ी मुरली है
खड़े तिरछी किये चितवन, अहाहाहा, ओहोहोहो

झनकते पाऊँ में नूपुर चमकते कान में कुण्डल
दमकते हाथ में कंगन, अहाहाहा, ओहोहोहो

पलक तिर्छी भवें बाँकी, नये अंदाज की झाँकी
रसीली आँख में अंजन, अहाहाहा, ओहोहोहो

सितम मुरली की चोटें हैं अधर दोनों सुधा से हैं
भला फिर क्यों नहीं उलझन, अहाहाहा, ओहोहोहो

न ‘राधेश्याम’ हो वारी, हैं तीनों लोक बलिहारी
तुम्हीं हो एक जीवनधन,अहाहाहा, ओहोहोहो
(गजल संख्या 8)
🍃🍃
मस्ती भरा काफिया

रदीफ के साथ-साथ काफिया मिलाने में भी कथावाचक जी ने अपनी ही मस्ती भरे प्रवाह का जलवा दिखाया है। एक बार के स्थान पर दो बार शब्द-समूह को दोहराने से एक विशेष नाद उत्पन्न होता है। इसको समझते हुए कथावाचक जी काफिया मिलाने में एक अद्भुत लय पैदा करते हुए देखे जा सकते हैं:-

मदन मोहन तपन मेरी, बुझाता जा बुझाता जा
पिलाए पर पिलाए अब, पिलाता जा पिलाता जा
(गजल संख्या 20)

यहॉं काफिया ‘बुझाता जा’ पर समाप्त नहीं हुआ। गजलकार ने एक बार फिर ‘बुझाता जा’ शब्दावली का प्रयोग किया और इस लयात्मकता को गजल के प्रथम शेर से लेकर बाकी सभी चारों शेरों में प्रयोग किया। ‘पिलाता जा पिलाता जा’ काफिया मिलाने का अनूठा अंदाज है ।इससे दो बार अगर किसी बात को कहा जाता है तो उसका असर दुगना हो जाता है। अपने आराध्य मदनमोहन से तपन बुझाने की प्रार्थना तथा राम-रस पिलाने का आग्रह कितना प्रभावशाली बन गया है, इसे पाठक महसूस कर सकते हैं।
🍃🍃
अंग्रेजी राज का विरोध

एक ग़ज़ल में सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन हां अंग्रेजी राज के प्रति कथावाचक जी का आक्रोश झलक रहा है। इसमें प्रथम पंक्ति में जिसे ‘बहन’ कहा गया है, वह वास्तव में भारत माता है। भारत में महाभारत का युद्ध देखने की अभिलाषा है। सत्य और धर्म के विजय का दृढ़ विश्वास भी है। गजल की अंतिम पंक्ति में चुपचाप खड़े रहने की बजाय कथावाचक जी यूद्धभूमि में कूद पड़ने की मानसिकता का पक्ष ले रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों के विरुद्ध लिखने का कारण यह होता है कि इसमें अंग्रेजों की कुटिल दृष्टि से बचा जाता है। लेकिन जब ग़ज़ल सुनाई जाती है, तो वक्ता का जो अंदाज होता है; उससे श्रोता सब समझ जाते हैं। और तीर निशाने पर लग जाता है। कथावाचक जी की देशभक्ति से भरी गजल देखिए:-

दिगम्बर सा, तुम्हारा, बहन अम्बर देखता हूँ मैं।
बँधा जूड़ा भी देखा, अब खुला सर देखता हूँ मैं ।।

खुले बालों के भीतर भी जो है सिन्दूर की लाली। स्वयंवर से उसे अब तक बराबर देखता हूँ मैं ।।

कहाँ जाता हूँ-जाकर भी नहीं जाता हूं कुरुदल में। खुला सर देखता हूँ-और अवसर देखता हूँ मैं ।।
*
यही भारत रहेगा या महाभारत बनेगा यह । तुम्हारे इन खुले बालों के भीतर देखता हूँ मैं ।।

कभी वंशी, कभी इस शंख पर यह दृष्टि जाती है। इसी तन मध्य श्री हरि और शिव हर देखता हूँ मैं ।।

विजय है धर्म ही की सत्य यह ही तो है-‘राधेश्याम ।’ बहुत देखा ठहरकर, अब तो जाकर देखता हूँ मैं ।।
(गजल संख्या 80)
🍃🍃
भाषा में प्रवाह को कथावाचक जी ने प्रमुखता दी है। वह हिंदी-उर्दू के चक्कर में भी नहीं पड़े। जहां जो शब्द उनके दिमाग में आता गया, वह उसे प्रयोग में लेते गए। बुद्धि को बुद्धी (गजल संख्या 5), नहाए को न्हाए (गजल संख्या 5), हानि को हानी (गजल संख्या 41) प्रवाहप्रियता के उनके कुछ उदाहरण कहे जा सकते हैं। कविता जनता के लिए है। जो उसे समझ में आ जाए, बस वही शब्दावली कथावाचक जी को अभीष्ट है। हालांकि यह भी सच है कि अनेक दशकों के बाद बड़ी संख्या में ठेठ उर्दू के शब्द अब हिंदीभाषी जनता के बीच में अपरिचित हो चुके हैं।
🍃🍃🍃🍃
गजल संख्या 83, 84 और 86 वास्तव में गीत हैं। सामाजिक परिस्थितियों का चिंतन-मनन इन गीतों के माध्यम से उजागर हुआ है। इससे जनकवि आपको सहज ही कहा जा सकता है। धनिकों के प्रति आपकी कड़वाहट को स्पष्ट रूप से यह गीत रेखांकित कर रहे हैं । इनमें समाज के दबे-कुचले बेसहारा लोगों की गरीबी के प्रति कवि की सहानुभूति और पीड़ा को स्वर मिला है। यह गीत समतावादी चेतना से ओतप्रोत हैं। कथावाचक जी ने इन गीतों में लड़कियों की शादियों में आने वाली दहेज की समस्याओं को उजागर किया है। ट्यूशन की कुप्रथा पर भी प्रहार किया है। बेरोजगारी की समस्या भी दर्शाई है। जरूर से ज्यादा इनकम टैक्स आदि की विकृतियों से व्यापारियों को होने वाली परेशानियों को भी गिनवाया है। कथावाचक जी ने बड़ी-बड़ी कोठियों के स्थान पर जनसाधारण की पीड़ा को अधिक महसूस किया है। ‘भाइयों’ के स्थान पर ‘भइयों’ का प्रचलित शब्द प्रयोग उनके काव्य को आम आदमी की बोलचाल की सहजता प्रदान करता है।
आइए, ऐसे कुछ गीतों पर नजर डाली जाए:-

घरों में बड़ी हो रही लड़कियां हैं/ नहीं ब्याह होता -तो- बदनामियां हैं
जो लड़कों को ढूंढो तो चालाकियां हैं
तिजारत कहो- मत कहो शादियां हैं
नहीं शादियां हैं, यह बर्बादियां हैं

किताबों का फीसों का, क्या है ठिकाना
फिर अपने ही घर मास्टरों को बुलाना
पढ़ाया भी, तो आगे बेकारियां हैं
परेशानियां ही, परेशानियां हैं
(गीत संख्या 83)

न पूछो जो जीवन में दुश्वारियां हैं
परेशानियां ही, परेशानियां हैं
××××
अव्वल तो पैसा कमाने की मुश्किल
कमाओ नहीं, तो है खाने की मुश्किल
कमाओ तो जेबें बचाने की मुश्किल
हिसाब उसका रखने-रखाने की मुश्किल
कई किस्म के टैक्स की सख्तियां हैं
परेशानियां ही परेशानियां हैं
(गीत संख्या 84)

मैं क्या गाऊॅं ? जब घर-घर में दुर्गतियॉं देख रहा हूं
तुम देख रहे हो कोठी को, उसके भीतर तहखानों को
अपनी लोहे की अलमारी, अलमारी वाले नोटों को
मैं नंगे भूखे भइयों की, झोपड़ियां देख रहा हूं
×××
तुम देख रहे हो सट्टे को, होटल वाले व्यापारों को
फिल्मी दुनिया के धंधों को, या शेयरों के बाजारों को
मैं छोटे-छोटे क्लर्कों की, बेबसियां देख रहा हूं
(गीत संख्या 86)

इस प्रकार हम पाते हैं कि कथावाचक जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न, जनवादी चेतना से भरे तथा नए-नए प्रयोगों को काव्य के क्षेत्र में सफलतापूर्वक आकार देने वाले सिद्धहस्त व्यक्तित्व थे। उनकी रचनाधर्मिता का ‘राधेश्याम रामायण’ से इतर पक्ष हिंदी संसार के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए पुस्तक के संपादक हरि शंकर शर्मा का परिश्रम प्रणाम के योग्य है। हरिशंकर शर्मा 20 जुलाई 1953 को बरेली (उत्तर प्रदेश) में जन्मे हैं। हिंदी और इतिहास में एम. ए. तथा बीएड हैं। आजकल जयपुर में रहते हैं।

171 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

खोकर अपनों को यह जाना।
खोकर अपनों को यह जाना।
लक्ष्मी सिंह
रिश्ते निभाने के लिए,
रिश्ते निभाने के लिए,
श्याम सांवरा
* श्री ज्ञानदायिनी स्तुति *
* श्री ज्ञानदायिनी स्तुति *
लक्ष्मण 'बिजनौरी'
चुनाव नजदीक आ रहे हैं तैसे तैसे
चुनाव नजदीक आ रहे हैं तैसे तैसे
Harinarayan Tanha
जय श्री राम!
जय श्री राम!
Dr. Bharati Varma Bourai
रिटायमेंट (शब्द चित्र)
रिटायमेंट (शब्द चित्र)
Suryakant Dwivedi
मेरे हमराज
मेरे हमराज
ललकार भारद्वाज
रुसल कनिया
रुसल कनिया
Bindesh kumar jha
*छाया कैसा  नशा है कैसा ये जादू*
*छाया कैसा नशा है कैसा ये जादू*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कविता _ रंग बरसेंगे
कविता _ रंग बरसेंगे
Manu Vashistha
तलाशता हूँ -
तलाशता हूँ - "प्रणय यात्रा" के निशाँ  
Atul "Krishn"
तुम्हारी बातें
तुम्हारी बातें
Jyoti Roshni
आज की बेटियां
आज की बेटियां
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
नेताओं एवं सरकारों के लिए कानून
नेताओं एवं सरकारों के लिए कानून
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
"पालतू"
Dr. Kishan tandon kranti
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
नव वर्ष
नव वर्ष
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
मुझे अकेले ही चलने दो ,यह है मेरा सफर
मुझे अकेले ही चलने दो ,यह है मेरा सफर
डॉ. दीपक बवेजा
काश तुम मिले ना होते तो ये हाल हमारा ना होता
काश तुम मिले ना होते तो ये हाल हमारा ना होता
Kumar lalit
दुख
दुख
पूर्वार्थ
कवि मोशाय।
कवि मोशाय।
Neelam Sharma
थाली   भोजन  की  लगी, वधू  करे  मनुहार ।
थाली भोजन की लगी, वधू करे मनुहार ।
sushil sarna
हसदेव बचाना है
हसदेव बचाना है
Jugesh Banjare
सपने में भी डर जाते हैं, उठ जाते हैं, चौंक रहे हैं।
सपने में भी डर जाते हैं, उठ जाते हैं, चौंक रहे हैं।
सत्य कुमार प्रेमी
माफिया
माफिया
Sanjay ' शून्य'
प्रकृति में एक अदृश्य शक्ति कार्य कर रही है जो है तुम्हारी स
प्रकृति में एक अदृश्य शक्ति कार्य कर रही है जो है तुम्हारी स
Rj Anand Prajapati
सीपी में रेत के भावुक कणों ने प्रवेश किया
सीपी में रेत के भावुक कणों ने प्रवेश किया
ruby kumari
मिलोगे जब हमें प्रीतम मुलाकातें वही होगी
मिलोगे जब हमें प्रीतम मुलाकातें वही होगी
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
#हर_घर_तिरंगा @हर_घर_तिरंगा @अरविंद_भारद्वाज
#हर_घर_तिरंगा @हर_घर_तिरंगा @अरविंद_भारद्वाज
अरविंद भारद्वाज
4798.*पूर्णिका*
4798.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...