Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 May 2024 · 3 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
पथ-प्रदर्शन (काव्य संकलन)
रचयिता: डा० मनमोहन शुक्ल व्यथित
(राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामपुर में हिंदी के प्राध्यापक)
प्रकाशकः अतरंग प्रकाशन, रामपुर।
प्रथम संस्करण:1986
पृष्ठ सख्या: 67
मूल्य: 12=50 रुपये
🍂🍂🍂🍂🍂🍃
समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
➖➖➖➖➖➖➖➖
रिहर्सल की कविताऍं
➖➖➖➖➖➖➖➖
पथ प्रदर्शन की कविताओं के कद को नाप कर डा० मनमोहन शुक्ल व्यथित के कवि की काव्यात्मक ऊंचाई अगर कोई तय करेगा, तो निश्चय हो गलती करेगा। व्यथित हिन्दी के प्रतिभा सम्पन्न कवि हैं और उनकी साधना काव्य के क्षेत्र में नित नए आयामों का स्पर्श करते हुए एक उल्लेखनीय उपलब्धि सिद्ध हुई है। कविता के जिस धरातल पर इस समय व्यथित आसीन हैं, उससे बहुत पहले की-दो दशक पूर्व की-रचनायें पथ-प्रदर्शन में संग्रहीत हैं। यह संकलन इस मायने में व्यथित के समग्र रचना कर्म को काल-क्रम के अनुसार पाठकों के सामने ला सकने में सहायक होगा और कवि के सहृदय पाठकों को शोध-परक दृष्टि से उसकी रचना-प्रक्रिया के विविध स्तरों को परखने का अवसर मिल सकेगा। पथ प्रदर्शन की कविताएं व्यथित के प्रारम्भिक कविता-कर्म की उपज हैं। यह वे कविताएं हैं, जब कवि-मन जन्म लेता है और कविता कागज पर उतरना शुरू होती है। ये रिहर्सल की कवितायें हैं क्योंकि इनमें साधना झांक रही है और झलक दे रही है कवि की कविता करने को लगन की। बनते-बनते ही कविता बनती है। पथ-प्रदर्शन, कविता बनने की मनः स्थिति दर्शा रहा है।

हर कवि प्रारम्भ में बहुत भावुक होता है। शिल्प और कथ्य की गहनता का आग्रह उसमें कम होता है। इस समय भावना की अभिव्यक्ति की अभिलाषा का प्राबल्य ही अधिक होता है । शुरूआत को कलम अनुभवजन्य नहीं, कल्पनाजन्य लिखती है। चांद-सितारे-सूरज- रात-सुबह पर नये कवि की कलम खूब चलती है। वह प्रेमिका से प्रथम मिलन पर कविता लिखता है, प्रतीक्षा पर लिखता है, पाने और खोने पर लिखता है। अक्सर यह सब स्थूल चित्रण-भर रह जाता है।

‘पथ-प्रदर्शन’ नामक जिस लम्बी कविता के आधार पर व्यथित के इस काव्य संकलन का नामकरण हुआ, वह कवि के सुकोमल प्रेमासक्त हृदय की सरल आत्माभिव्यक्ति है। व्यथित का पत्नी के प्रति प्रेम इन शब्दों में अभिव्यक्त हो उठा है:-

कवि कालिदास की ‘विद्या’ हो,तुलसी की ‘रत्नावली’ प्रिये/ ऋषि वाल्मीकि को पत्नी-सम/मेरे उपवन की कली प्रिये ।” (पृष्ठ 22 )
उपरोक्त कविता में नितान्त निजता है। यह निजता आदर के योग्य है।

प्रकृति-चित्रण, संग्रह में प्रभावकारी रूप से उपस्थित है। संध्या काल का दृश्य कवि की कल्पना से वधू रूप में कितना सुन्दर चित्रित हुआ है !

अरे ! यह हुआ क्या। निशा आ गई वह, हुआ नष्ट सौंदर्य क्षण में वधू का/बढ़ी आ रही थी अनी अब निशा की, सशंकित वधू नव चली जा रही थी।” (पृष्ठ 11)

प्रातः काल कवि में नव वधू की कल्पना-स्रष्टि करता है:-

रग-मंच पर खड़ी कौन तुम ? स्वागत करने किस वर का/किस धुन में तल्लीन अधोमुख, ध्यान किए हृदयेश्वर का ?’ (पृष्ठ 66)

वर्षा, निम्न पंक्तियों में कवि की प्राणवान कलम से मानो जीवन्त चित्र रूप में उतर आई है-

अनल वृष्टि रवि कर रहा था धरा पर, तवे-सी यह वसुधा जली जा रही थी/तपित देह पर स्वेद की बूंद आकर, जलज पत्र पर ज्यों ढली जा रही थी ।” (पृष्ठ 28 )

व्यथित के कवि-नाम को ‘दीनों की दशा’ कविता पर्याप्त रूप से सार्थक करने में समर्थ है। स्वराज्य के बावजूद दीन-हीनों की दशा पर कवि का हृदय आर्तनाद कर उठता है और सहज प्रश्न उसके मन में उठ खड़ा होता है कि:-

ढिंढोरा पीटे झूठे आज- ‘हुए भारतवासी आजाद’। यही आजादी कहलाती / कि धन पर जन होते बर्बाद ?” (पृष्ठ 53 )

मृत्यु के चिर सत्य को सम्मुख रखकर कवि धनिकों से प्रश्न करता है :-

काल की गोद सभी का गेह/गर्व क्यों करते हो धन का ? / नहीं तुम सोच रहे हो आज/सत्य क्या है इस जीवन का ?” (पृष्ठ 54 )

कुल मिलाकर यह संकलन डॉ मनमोहन शुक्ल व्यथित के कवि हृदय की सरल, सहज भावना-मूलक उदात्त अभिव्यक्ति है। आशा है हिन्दी-जगत में पुस्तक का स्वागत होगा ।

139 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

***************गणेश-वंदन**************
***************गणेश-वंदन**************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
শিবকে নিয়ে লেখা কবিতা
শিবকে নিয়ে লেখা কবিতা
Arghyadeep Chakraborty
*होली: कुछ दोहे*
*होली: कुछ दोहे*
Ravi Prakash
संकल्प
संकल्प
Shyam Sundar Subramanian
एक अधूरे सफ़र के
एक अधूरे सफ़र के
हिमांशु Kulshrestha
अक्सर सच्ची महोब्बत,
अक्सर सच्ची महोब्बत,
शेखर सिंह
प्रेम
प्रेम
Shweta Soni
"किसी ने सच ही कहा है"
Ajit Kumar "Karn"
किसी विशेष व्यक्ति के पिछलगगु बनने से अच्छा है आप खुद विशेष
किसी विशेष व्यक्ति के पिछलगगु बनने से अच्छा है आप खुद विशेष
Vivek Ahuja
समझाओ उतना समझे जो जितना
समझाओ उतना समझे जो जितना
Sonam Puneet Dubey
हाइपरटेंशन(ज़िंदगी चवन्नी)
हाइपरटेंशन(ज़िंदगी चवन्नी)
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सियासत खुद का पेट भरेगी
सियासत खुद का पेट भरेगी
Dr. Kishan Karigar
गुब्बारा
गुब्बारा
अनिल "आदर्श"
होना जरूरी होता है हर रिश्ते में विश्वास का
होना जरूरी होता है हर रिश्ते में विश्वास का
Mangilal 713
कच्ची दीवारें
कच्ची दीवारें
Namita Gupta
दिल की बातें
दिल की बातें
Ritu Asooja
सिद्दत्त
सिद्दत्त
Sanjay ' शून्य'
लड़ता रहा जो अपने ही अंदर के ख़ौफ़ से
लड़ता रहा जो अपने ही अंदर के ख़ौफ़ से
अंसार एटवी
वो चिट्ठी
वो चिट्ठी
C S Santoshi
अनेकता में एकता
अनेकता में एकता
Sunil Maheshwari
तुम आओ एक बार
तुम आओ एक बार
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
*विषमता*
*विषमता*
Pallavi Mishra
23/122.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/122.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कौन है ज़िंदा ……
कौन है ज़िंदा ……
sushil sarna
सितारे हरदम साथ चलें , ऐसा नहीं होता
सितारे हरदम साथ चलें , ऐसा नहीं होता
Dr. Rajeev Jain
वीरों की अमर कहानी
वीरों की अमर कहानी
डिजेन्द्र कुर्रे
Not only doctors but also cheater opens eyes.
Not only doctors but also cheater opens eyes.
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मुझमें गांव मौजूद है
मुझमें गांव मौजूद है
अरशद रसूल बदायूंनी
Be positive 🧡
Be positive 🧡
पूर्वार्थ
"सच्चाई की ओर"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...