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11 May 2024 · 5 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
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कालदंश (कहानी संग्रह)
संपादक: चन्द्र प्रकाश आर्य “कमल संदेश” एवं डा० चन्द्र प्रकाश सक्सेना ‘कुमुद’
प्रकाशकः अतरंग प्रकाशन, रामपुर,
मूल्य 15 रुपये,
पृष्ठ 97
प्रकाशन वर्ष; 1986
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समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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(यह समीक्षा 27-9-86 को ‘कालदंश’ के विमोचन समारोह में पढ़ी गई थी तथा सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक 18 अक्टूबर 1986 अंक में प्रकाशित हो चुकी है)
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‘कालदंश’ का कथा-संसार बहुरंगा है। केवल इसलिए नहीं कि इसके कहानीकार दस अलग-अलग कलमकार हैं, वरन इसलिए कि इसकी चौदह कहानियों में अधिकांश कथ्य के विविध और विस्तृत आयाम प्रस्तुत कर रही हैं। इन कहानियों में काम-भावना का स्पंदन है, स्वार्थ- भाव का चरम चित्रण है, पति-पत्नी की एकरूप स्थिति का दर्शन है, सेवा का बेनकाब होता ढकोसला दीखता है, मदद न कर पाने की निरुपाय विवशता झांक रही है, धन और सम्मान की सम्बद्धता को रुपायित करता चित्र है, और है स्वतंत्रता के लिए किया गया तप । मतलब यह कि समय और समाज के सत्य के विविध स्तरों का खाका खींचने वाला कथा संग्रह है-यह कालदंश ।

कालदंश में मुझे दस कहानियां प्रायः निर्दोष लगीं। जिनमें से एक, चन्द्र प्रकाश आर्य ‘कमल सन्देश’ की विचार- आपूरित कहानी ‘सुस्त घड़ी’ संग्रह के समग्र दर्शन को समझा पाने में समर्थ लगती है। दर्शन-काल- देश का ही नहीं, सारी कला का, सारे काल का, उस घालमेल का, जो चीजों को न समझने या जानबूझ कर गलत समझने पर होता है। ‘सुस्त घड़ी” में वह सब कुछ कह दिया गया है, जो संग्रह के संपादक द्वय ने प्रस्तावना अर्थात “अपनी बात” कहकर कहना चाहा है। यानि अप्रतिबद्धता, संवेदनशीलता, सत्यता और कथ्य की अर्थवत्ता के प्रति सर्पित आग्रह। “सुस्त घड़ी” के नायक चित्रकार जार्ज का यह भोला सोच कितना पवित्र है- ‘मैने तो चित्र बनाते समय कभी किसी दार्शनिक सिद्धान्त और राजनीतिक दर्शन का विचार नहीं किया। जो देखा. महसूस किया और आवश्यक लगा-कागज पर उतार दिया, फिर यह अखवार वाले, राजनीतिज्ञ और प्रशासक उसके चित्रों के तरह-तरह के अर्थ क्यों लगा रहे हैं-कला को कला के रूप में ही क्यों नहीं स्वीकार लेते वह लोग-उसे राजनीति में घसीटने की क्या आवश्यकता है ।” (पृष्ठ 41) “सुस्त घड़ी” एक कल्मकार के सही सोच का प्रतिनिधित्व करती कहानी है। पूरे वजन से यह कला की साधना और कला की समझ-दोनों को बौद्धिक घरातल पर समझाने में समर्थ है।

आइए, एक और कहानीकार डा० सुरेश चन्द्र की मूलतः आशावादी कहानी “अवलम्ब” को देखें, जो स्वार्थ और विश्वासघात को जितने मार्मिक ढंग से चित्रित करती है, उतने ही जोरदार तरीके से विश्वास की अभिव्यक्ति भी कर पाती है। सब ओर से निराश, हताश, चोट खाए मन को पत्नी का सहारा मिले, तो वह निर्बल नहीं रह जाता। जीवन-यात्रा में यदि जीवन साथी सही मायने में साथ रहे, तो मनुष्य कभी टूट नहीं सकता । हताशा के अंधकार में आशा का दीप जलाती कहानी है “अवलंब ।।

समाज-सेवी कहे जाने वाले क्लबों में सेवा का जो नाटक बहुधा होता रहता है, उसके मूल में प्रायः छिपी प्रदर्शन और यश की लिप्सा को उघाड़ने का काम कर रही है, डा० चन्द्र प्रकाश सक्सेना “कुमुद” की कहानी “दृष्टि दोष” । आंखों का कैम्प कोई समाजसेवी क्लब लगाता है और वहां जो कारनामें होते हैं, उस पर परेशान कहानी के नायक का यह कथन कितना विचारणीय है- “दिखावा है, ढोंग है, सियासत है। किसी जरूरतमंद का ठीक से इलाज हुआ है यहां ? किसी गरीब को दवा मिली है अभी तक ? वोट की राजनीति का यह भी एक पेंतरा है।” (पृष्ठ 16)

लोग प्रायः मदद नहीं करते हैं और करते भी हैं तो उस अहसान की एक कीमत चाहने लगते हैं। वह कीमत कितनी बड़ी हो सकती है. कितनी तामसी हो सकती है और कितनी घिनौनी भी हो सकती है-इसे समझना है तो डा० छोटे लाल शर्मा नागेन्द्र की पैनी कहानी “पिन कुशन जिन्दगी” बहुत उपयोगी रहेगी । “पिन कुशन जिन्दगी” को पढ़कर यही कहना पड़ेगा कि वे कहीं अच्छे इन्सान हैं जो दूसरों पर अहसान करने से मना कर देते हैं। कम से कम वे अहसान को बेचते तो नहीं हैं।

बात सिर्फ अहसान की ही नहीं होती, कई बार आदमी अपनों की मदद करना चाहता है, पर, दरिद्रता उसे मदद करने नहीं दे पाती । मदद न कर पाने की वाह्य ताड़ना और आन्तरिक वेदना का जो मर्मस्पर्शी मिला-जुला नाम बनता है, वह है डा० महाश्वेता चतुर्वेदी की कहानी “टूटा पहिया “
‘सबला” भी डा० महाश्वेता चतुर्वेदी की ही दूसरी कहानी का नाम है। एक ऐसी, सबला नाम की नारी की व्यथा-कथा, सौंदर्य ही जिसका शत्रु बन गया और चिकित्सक के रूप में उसके द्वारा की जाने वाली समाज-सेवा पति और सास की नजरों में खटकने लगी । पर, सबला ने आत्महत्या कर ली और अबला बन गई। यूं तो कह सकते हैं कि कहानी निराशावादी है और केवल प्रश्नवादी है। पर, निराशा का जो चमकीला काला अंधेरा कहानी उत्पन्न करती है वह नारी जीवन की मौजूदा स्थिति पर एक बहुत जोरदार और जरूरी प्रश्न है।

ओमप्रकाश यती की नाटकीय कहानी “दो प्रतिभाएं” का संदेश यह है कि मैले कपड़ों से व्यक्ति का महत्व कम नहीं हो जाता। कीचड़ में भी कमल खिलते हैं और गांव में पैदा हो जाने से ही कुछ लोग छोटे नहीं हो जाते हैं। कहानी, शहरी श्रेष्ठता के दर्प में चूर मानसिकता को, लज्जा की स्थिति में बड़ी खूबसूरती से ला खड़ा करती है।

हम कैसे बन गये हैं, कितनी स्वार्थ वृत्ति हममें आ गई है कितने मतलबी हम होकर रह गये हैं- यह बात सशक्तता पूर्वक दर्शा रही है हरिशंकर सक्सेना की कहानी “बिखराव” । मतलब है तो कहने लगे बाप, मतलब नहीं रहा तो पूछने लगे कि कौन हैं आप-बिलकुल यही सामाजिक मानसिकता आज लोकजीवन में शेष रह गई है, जो “बिखराव” का कहानीकार बड़ी सरलता से हमें बता जाता है।

“अस्तित्व” इसी कहानीकार की दूसरी कहानी है। यह धन है जो किसी व्यक्ति को मौजूदा समाज में अस्तित्व प्रदान कर पा रहा है, धन की सता का पैशाचिक चेहरा बेनकाब करने में समर्थ है यह कहानी । कहानीकार के विचार-क्रम में ही मैं कहूंगा कि व्यक्ति नहीं रह गया है आज, व्यक्ति हल्का हो गया है, वजन सिर्फ लिफाफे का ही बाकी रह गया है।

प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल की कहानी “लावारिस की मौत” संग्रह में अपने किस्म को अकेली ही कहानी है। स्वतंत्रता-आंदोलन के दौर की मानसिकता को ताजा करती यह कहानी, बलिदानों के गौरवमय पृष्ठ को यश गाथा सुना रही है। इसमें एक ओर त्याग है, और शहादत का वह पवित्र रक्त है जो आजादी पाने के लिए खुशी से बहा था, दूसरी ओर भोग है, स्वार्थ है, अंग्रेज की चाटुकारिता है, अपने ही भाइयों का देश-द्रोह है जो गुलामी बनाये रखने के लिए निकम्मेपन और निर्लज्जता के साथ मौजूद था। इस जोरदार कहानी का कहना यह है कि जो आजादी के लिए लावारिस होकर मरे, क्या हम आज उनके वारिस कहलाने लायक हैं ?

कुल मिलाकर कालदंश की कहानियां हमारे समय की कड़वी सच्चाइयों को सामने लाने और उजागर करने की कोशिश में लगी कहानियां हैं।

सामाजिक चुभन, घुटन, पीड़ा और संत्रास से यह कथा-संग्रह आपूरित है। निष्कर्षतः जो बात कालदंश हमें बता रहा है वह यह है कि मूल्यों के स्तर पर व्यवस्था-जन्य दलदल में समाज डूब रहा है और उससे उबरने की डूबती चाहत लिए एक हाथ उठ रहा है, जिसके साथ में हैं एक शोर जो कभी मौन तो कभी मुखर हो रहा है। कहने का मतलब यह है कि कालदंश अपने अधिकांश कलेवर में एक ऊंचे और अच्छे स्तर का कहानी संग्रह है। इसके कुशल संपादन के लिए संपादक द्वय, श्री चन्द्र प्रकाश आर्य ‘कमल संदेश’ और डा० चन्द्र प्रकाश सक्सेना कुमुद बधाई के पात्र हैं।

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