*पुस्तक समीक्षा*
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम :श्री करवा चौथ व्रत कथा (काव्य)
रचयिता : प्रकाश चंद्र सक्सेना दिग्गज मुरादाबादी ,कटघर, छोटी मंडी मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
प्रकाशक : प्रज्ञा प्रकाशन , स्टेशन रोड, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
प्रथम संस्करण : 2001 मूल्य ₹6
संपादक : डॉ श्रीमती प्रेमवती उपाध्याय स्टेशन रोड, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
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करवा चौथ का व्रत कहने को तो एक छोटा सा त्योहार है, लेकिन अपने आप में यह गृहस्थ जीवन का सर्वाधिक रोमांचक और आस्थावान दिन कहलाता है । पति और पत्नी को परस्पर प्रेम से जोड़ने की जो कला भारतीय मनीषा ने हजारों वर्षों से लोक जीवन में स्थापित की है, करवा चौथ का व्रत उसका जीता-जागता उदाहरण है । ऐसे रचनाकार कम ही हुए हैं जिन्होंने एक ओर बाल कविताऍं लिखी हैं, सामाजिक जागृति को आधार मानकर गीत लिखे हैं तथा दूसरी ओर अपनी संस्कृति की पहचान को हृदय में विशेष स्थान देते हुए करवा चौथ के व्रत को हिंदी खड़ी बोली में लयबद्ध रूप से आम जनता के लिए प्रस्तुत भी किया। प्रकाश चंद्र सक्सेना ‘दिग्गज मुरादाबादी’ ऐसे ही सूझबूझ के धनी कवि हुए हैं । आप ने मात्र दस पृष्ठ की करवा चौथ व्रत की कथा लयबद्ध रूप से लिखी और उसे पुस्तक रूप में छपवा कर सदा-सदा के लिए पाठ हेतु सब को उपलब्ध करा दिया । वैसे तो कथा किसी न किसी रूप में कैलेंडर आदि को सामने रखकर महिलाऍं पढ़ लेती हैं, लेकिन काव्य-सौंदर्य का अभाव उसमें महसूस होता है । इसकी पूर्ति दिग्गज मुरादाबादी द्वारा लिखित श्री करवा चौथ व्रत कथा से होती है ।
आपने इसमें सर्वप्रथम अत्यंत चतुराई से करवा चौथ के व्रत की संवत के अनुसार माह एवं तिथि पाठकों को प्रस्तुत कर दी है :-
हर वर्ष कार्तिक मास चतुर्थी/ शुक्ल पक्ष जब आती है/ दिग्गज हर पतिव्रता नारी/ मन से यह पर्व मनाती है
यह व्रत किसलिए और कैसे मनाया जाता है, इसके बारे में भी आपने विस्तार से बताया है:-
इस दिन निर्जल व्रत रख इनका/ मन फूले नहीं समाता है/ इस दिन व्रत रखने वालों का/ उत्साह बहुत बढ़ जाता है/ इस दिन चंदा के दर्शन कर/ सब उसको अर्ध चढ़ाती हैं/ गणपति गणेश को भोग लगा/ पीछे कुछ खाती /-पीती हैं
व्रत कथा की नायिका की मानसिकता, पारिवारिक परिवेश और उसके सातों भाइयों का उसके प्रति प्रेम कथा में भली-भांति प्रदर्शित किया गया है। अगर उसमें कोई चूक हो जाती, तो लेखक परिस्थितियों का चित्रण करने से वंचित रह जाता, लेकिन हम देखते हैं कि नायिका बींजा के सातों भाइयों का अभूतपूर्व प्रेम अपनी बहन के प्रति कितना अधिक था, इसे कवि ने भली-भांति दर्शाया है : –
कैसे देखें भाई अपनी/ इस निर्जल सोन चिरैया को/ इस व्रत से कष्ट अपार हुआ/ बींजा के हर हर भैया को
कवि ने इस बात को रेखांकित किया है कि रीति-रिवाज पूरी तरह से विधि पूर्वक अंगीकृत किए जाने चाहिए तथा उसमें कोई जल्दबाजी अथवा छेड़छाड़ सही नहीं रहती । जिस प्रकार से चंद्रमा के उदय को छल करके नायिका बींजी के भाइयों ने उपस्थित कर दिया, उसको भी कथा में प्रमुखता से कवि ने दर्शाया है :-
अति लाड प्यार भी कभी-कभी/ सचमुच घातक बन जाता है/ अपनों के हित जब किया कर्म/ मन का पातक बन जाता है
पीपल के पत्तों के पीछे/ चलनी में आग जलाने से/ कोई कैसे बच सकता है/ चंदा का धोखा खाने से
अंत में कवि ने अपनी ओर से समाज को एक सीख दी है और कहा है कि संस्कृति के पुरातन पद चिन्हों पर चलकर हम जीवन को सुखमय बना सकते हैं:-
दिग्गज का नम्र निवेदन है/ बहनें पर विश्वास करें/ प्रभु तो करुणा के सागर हैं/ प्रभु से अच्छे की आस करें
बींजा ही क्या यह व्रत रखकर/ सबने ही लाभ उठाया है/ जिसने भी इसको साधा है/ जीवन का हर सुख पाया है
आजकल बहुत से लोग आधुनिकता के भ्रम में पुरातनता को अस्वीकार करने में लगे रहते हैं । उनके लिए दिग्गज मुरादाबादी की श्री करवा चौथ व्रत कथा उचित अवसर पर पढ़ना सही रहेगा।
( नोट : यह समीक्षा साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय के संचालक डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा उपलब्ध कराई गई सामग्री के आधार पर तैयार की गई है। डॉ मनोज रस्तोगी जी का आभार)