पुस्तक समीक्षा-महीन धागे से बुना रिश्ता
पुस्तक-महीन धागे से बुना रिश्ता ‘कहानी-संग्रह’
कथाकार-सीमा भाटी
समीक्षक-मनोज अरोड़ा
किसी ने सही कहा है कि इन्सान के अन्दर अनन्त शक्तियों का भण्डार होता है, लेकिन ये निर्भर उस इन्सान पर ही करता है कि वह उनकी पहचान कैसे करे और उनका सदुपयोग कर समाज के समक्ष प्रस्तुत किस प्रकार से करे? वह चाहे काँच के टुकड़ों को जोड़कर शीशमहल बनाने वाला कारीगर हो, लोहे के औजारों से पत्थर को नया आकार देने वाला मूर्तिकार हो या शब्दों को जोड़कर रचनाओं के रूप में दास्तां प्रस्तुत करने वाला रचनाकार हो। रचनाओं में अगर कहानी का जि़क्र करें तो कहानियाँ हम सबके जीवन में घटित होती हैं तथा औरों की हम सुनते व देखते भी हैं लेकिन उन तथ्यों को तराशकर जो चुनिंदा शब्दों में तब्दील करते हैं उन्हें दुनिया में कलमकार का दर्जा हासिल होता है। अन्दुरूनी रिश्तों में दरार या भूली-बिसरी यादें सामने आना, समाज में रूढि़वादिता सम्बन्धित उतार-चढ़ाव या जिन्हें हम अपनाना चाहते हों और उन्हें अपना ना सकें। कुछ इसी प्रकार की कहानियों से सुसज्जित है राजस्थानी, हिन्दी व उर्दू की सशक्त हस्ताक्षर कथाकार सीमा भाटी का कहानी-संग्रह ‘महीन धागे से बुना रिश्ता’।
पुस्तक का जैसा शीर्षक है उसमें उससे भी बढ़कर मेल खाती कहानियाँ शामिल हैं, क्योंकि सीमा भाटी ने लेखन करते वक्त न केवल शीर्षक को जहन में रखा बल्कि शब्द संरचना व तारतम्य को जोड़ते हुए सरल भाषाशैलीयुक्त दस कहानियों को संजोया है। कथाकार की प्रथम कहानी पुस्तक के शीर्षक पर आधारित है जिसमें ऐसे दो इन्सानों के बीते जीवन की स्मृतियाँ दिखाई पड़ती हैं जो मिलकर भी मिल ना सके। उक्त कहानी वैसे तो चारु व इरफान पर आधारित है, परन्तु सीमा भाटी ने जिस प्रकार कहानी को प्रस्तुत किया है उसे पढऩे पर पाठक कुछ-कुछ स्वयं के साथ बीता महसूस करेंगे। ‘सबक’ कहानी भले ही राजनीति का आधार लिए हुए है परन्तु उसमें मुख्य पात्र निर्मला द्वारा दिया अदृश्य संदेश बहुत कुछ सीखाता प्रतीत होता है। तृतीय कहानी ‘सपने’ उन माँ-बाप के जज़्बातों को संजोए हुए है जो अपने बच्चों को समाज के समक्ष उच्च व्यक्तित्व के रूप में देखना चाहते हैं लेकिन समय उनके साथ कैसा बर्ताव करता है यह पाठक कहानी पढ़कर ही जानेंगे जिसमें कथाकार ने संदेश के रूप में लिखा है कि औलाद को अच्छी शिक्षा ज़रूर दिलाओ लेकिन उससे पहले अच्छे संस्कार देने जरूरी हैं।
बीच पड़ाव से पूर्व ‘बंटवारा’ कहानी पढ़ते वक्त शायद ही कोई ऐसा पाठक हो जिसकी आँखें नम न हों, क्योंकि प्रसिद्ध कहावत के अनुसार ‘चार कपूतों से एक पूत ही भला’। उक्त कहावत को दर्शाती कहानी अपने सीने में अनन्त दर्द छुपाए हुए है। कड़ी को आगे बढ़ाते हुए सीमा भाटी ने पाँचवी कहानी ‘दिल के दाग’ में एक लड़की के अन्दुरूनी पीड़ा पर कलम चलाई है, जिसमें अन्त तक पाठकों की जिज्ञासा निरन्तर बनी रहेगी कि आगे क्या होगा? लेकिन कहानी का अन्त शुरूआत और बीच के बिलकुल विपरीत है। बीच पड़ाव को पार करते हुए कथाकार ने एक ऐसी लड़की के दर्द को दर्शाया है जो बहन की भूमिका निभा रही है जिसे उसका भाई उसके दर्द को देखते हुए भी अनदेखा कर देता है जो एक पत्नी की मृत्यु के पश्चात् अपनी सुख-सुविधा हेतु दूसरा विवाह कर लेता है, तब उसे न तो अपनी बेटी नज़र आती है और न ही बहन। कहानी मुस्लिम समाज पर आधारित है जिसमें सकीना अपनी पहली भाभी की जन्मी पुत्री निलोफर की खुशियों के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है।
इससे अगली कहानी ‘यहीं का यहीं’ उन अहं से भरे व्यक्तियों पर आधारित है जो यह मानते हैं कि उनसे अधिक कोई और ना तो समझदार है, ना गुणवान और ना ही सौन्दर्य का मालिक। लेकिन उनका अहं तब चकनाचूर होता है जब उन्हें यह अहसास होता है कि जो मैंने बोया था आज वही काटना पड़ रहा है। आठवीं कहानी नंदिनी और यशवर्धन पर आधारित है जिसमें नंदिनी उच्च व्यक्तित्व की धनी एवं संस्कारवान है तथा यशवर्धन का रिश्ता नंदिनी के साथ तय होना होता है लेकिन यशवर्धन अपनी कमी को छुपाने हेतु नंदिनी को बुरा साबित करना चाहता है। इस कहानी को लिखते समय सीमा भाटी ने उन किरदारों और अहम् बातों का विशेष ध्यान रखा है जो रिश्ता तय होने से पूर्व आवश्यक होती हैं।
समापन से पूर्व नौंवी कहानी ‘वादा’ एक सरकारी अध्यापक अजय पर रची गई है जो नि:स्वार्थ व निष्पक्ष रूप से अपना जीवन निर्वाह करते हुए परहित में समय लगाता है, लेकिन बदले में उसे वही मिलता है जो दुनिया का दस्तूर है कि भलाई करने वालों की कद्र-ओ-कीमत उतनी नहीं पड़ती जितनी पडऩी चाहिए। दसवीं तथा अंतिम कहानी का दर्द कलम से लिख पाना या शब्दों से बयां कर पाना अतिकठिन है जिसमें एक कमजोर दिल इन्सान अन्याय को भगवान की मर्जी बताते हुए सच्चाई से आँखें मूँदना चाहता है। कहानी ‘फैसला’ में उस नौजवान युवती का दर्द छिपा है जिसे हम आए दिन समाचारों में पढ़ते व सुनते हैं, लेकिन कदम आगे बढ़ाने के नाम पर हम शून्य हो जाते हैं।
कथाकार सीमा भाटी ने कहानियों की रचना इस प्रकार से की है जिन्हें पढ़ते समय शुरू से अन्त तक न तो पाठक की जिज्ञासा समाप्त होती है और न ही पढऩे की रूचि, क्योंकि कथानक इतने आकर्षक हैं मानो ऐसा महसूस होता है जैसे वह कहानी न पढ़ रहे हों बल्कि उक्त पात्र उनके आसपास कहीं घेरा डेला हुए हों। ‘महीन धागे से बुना रिश्ता’ कहानी-संग्रह रिश्तों की ऐसी डोर पकड़े हुए है जिन्हें पकड़ हम उन पात्रों की ओर खिंचे चले जाते हैं।
मनोज अरोड़ा
लेखक एवं समीक्षक
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