Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Dec 2021 · 5 min read

पुस्तक समीक्षा *तुम्हारे नेह के बल से (काव्य संग्रह)*

पुस्तक समीक्षा
तुम्हारे नेह के बल से (काव्य संग्रह)
कवि का नाम : गिरिराज
प्रथम संस्करण प्रकाशन वर्ष : मई 1987
पता : गिरिराज ,चौढ़ेरा किला ,जिला बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)
कुल पृष्ठ संख्या: 102
मूल्य ₹50
मुद्रक : शंकर प्रिंटिंग वर्क्स ,रामपुर (उ.प्र.)
कवि का परिचय (पुस्तक में अंकित) :
दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर पूर्व में बुलंदशहर जनपद के गांव चौढ़ेरा किला में दिनांक 24 फरवरी 1935 ईस्वी को जन्म, डिबाई ,चंदौसी और मेरठ में शिक्षा प्राप्त। आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए., अंग्रेजी में एम.ए. पूर्वार्ध। संप्रति नैनीताल डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड हल्द्वानी (नैनीताल) में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर(उ. प्र.)मोबाइल 9997615451
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
श्री गिरिराज का काव्य संग्रह तुम्हारे नेह के बल से हृदय की भावनाओं को सुंदर शब्दों में आकार लिए हुए है । प्रेम के गीतों से यह काव्य संग्रह महक रहा है । पृष्ठ-पृष्ठ पर एक अनोखी सुगंध विद्यमान नजर आती है । कवि के जीवन की प्रेरणा यह प्रेम ही तो है । काव्य में प्रेम की उपस्थिति स्वाभाविक है । यह प्रेम ही तो है जो व्यक्ति को रसमय बना देता है। प्रिय का साथ जब एक बार मिल जाता है तो वह सारा जीवन अलग नहीं हो पाता । कभी प्रेम के साथ-साथ कवि साकार चलता है या कभी फिर उसकी स्मृतियों को अपने जीवन का संबल बना लेता है । तुम्हारे नेह के बल से काव्य संग्रह में भी यह प्रवृत्ति प्रबलता के साथ देखने में आती है । प्रेम कवि के जीवन को सार्थकता प्रदान करता है और जीवन धन्य हो उठता है । पहला गीत प्रेम की इसी उर्वरा भाव भूमि पर लिखा गया है । कवि अपने प्रेम के प्रति समर्पित निष्ठा से धन्यवाद अर्पित कर रहा है :-

तुम्हारे नेह के बल से
उठे ऊपर धरातल से
नहीं तो नाम तक मेरा
न ले पाते अधर कोई
( प्रष्ठ 11 )
प्रेम के प्रति कवि का समर्पण अटूट है। वह प्रेम के प्रति नतमस्तक है । प्रेम ही उसके जीवन का आधार बन गया है। वह अपने प्रेम को अनंत और असीम राहों पर ले जाना चाहता है। उसकी इच्छा है कि प्रेम का यह सफर कभी समाप्त न हो । लेकिन उसे शरीर की विवशताओं का भली-भांति स्मरण है । वह जानता है कि देह की अपनी सीमाएं हैं। इसीलिए उसने इतने सुंदर ढंग से अपनी सीमाओं को स्वयं इंगित कर दिया है :-

मन करता है साथ निभाऊँ
इतनी उमर कहां से लाऊँ
जितना लंबा सफर तुम्हारा
मेरा उतना सफर नहीं है
(पृष्ठ 25)
प्रेम को कवि ने उच्च स्थान दिया है । वह अपने जीवन में सभी उपलब्धियों का श्रेय प्रिय को देता है और उसी के प्रति अपनी सारी सफलताओं को समर्पित कर देता है। यह समर्पण का भाव व्यक्ति को जहां एक ओर ऊँचा उठाता है ,वहीं स्वभाव की विनम्रता और दृष्टि की विशालता को भी दर्शाता है :-

एक जलाशय तुम्हें पा नदी हो गया
वरना किस्मत में उसकी समंदर न था
प्यार के तख्त पर तुमने आसन दिया
वरना किस्मत का मैं तो सिकंदर न था
(प्रष्ठ 19 )
गीतों के माध्यम से जहां प्रेम की अभिव्यक्ति कवि ने की है ,वहीं समाज-जीवन में आक्रोश का स्वर बुलंद करने में भी उसने कसर नहीं छोड़ी । इस दृष्टि से बोल री मच्छी कित्ता पानी काव्य संग्रह की सर्वश्रेष्ठ रचना कही जा सकती है । इसमें कवि का एक सामाजिक चिंतक और सुधारक का रूप देखने में आ रहा है। वह राजनीति की प्रचलित धारा से भिन्न विचार रखता है और अपने गीत के माध्यम से उसे बड़े ही भोलेपन से साफ-साफ कह देता है। ऐसा कहने में वह बच्चों के बीच अक्सर बोली जाने वाली एक पुरानी लोकप्रिय पंक्ति बोल री मच्छी कित्ता पानी की टेक का प्रयोग करता है । इस से कविता जानदार हो जाती है। संदेश बहुत प्रभावी है । कवि का आक्रोश देखने लायक है :-

सभी मस्त हैं अपनी धुन में
रहा न कोई अनुशासन में
मिले पँजीरी यह गदहों को
प्रतिभा भटके जन शासन में
राजनीति हो गई दीवानी
बोल री मच्छी कित्ता पानी
( पृष्ठ 55 )
जहां काव्य संग्रह में गीतों की छटा कवि ने बिखेरी है ,वहीं कुछ अतुकांत कविताओं को भी संग्रह में शामिल किया गया है । अतुकांत कविताएं विचारशील मस्तिष्क की उपज होती हैं और उनके पढ़ने में कुछ वैचारिक ऊर्जा पाठकों को मिलती है। ऐसी ही एक रचना पर निगाह डालिए। रचना छोटी है लेकिन बहुत कुछ सोचने को बाध्य कर देती है :-

आपने मुझे आवाज दी ?
नहीं तो !
मैंने भी तो नहीं सुना ।
लगता है आप गूंगे हैं
और लगता है आप भी बहरे हैं।
मगर सच तो यह है –
हम सब गूंगे हैं
हम सब बहरे हैं ।
( पृष्ठ 80 )
पुस्तक के अंत में कुछ मुक्तक हैं, जो विशेष रुप से ध्यान आकृष्ट करते हैं । इन में प्रवाह है और इनकी गेयता में पाठक खो जाता है । इन मुक्तकों की विशेषता यह है कि इन्हें जब भी पढ़ा जाएगा ,एक नई रोशनी मिलेगी और उम्मीद की एक नई किरण दरवाजे पर दस्तक देगी । दो मुक्तकों का आनंद उठाइए:-

खाक में रोज मिलती रही हस्तियाँ
और बदलती रहीं द्वार की तख्तियाँ
नागासाकी उजाड़ो या हीरोशिमा
हम बसाते रहेंगे नई बस्तियाँ
××××××××××××××××××××
तुम्हें हर लहर पर किनारा मिलेगा
तुम्हें हर किसी से सहारा मिलेगा
तुम्हारी नजर में अगर आरजू है
तुम्हें हर नजर से इशारा मिलेगा
(प्रष्ठ 96 और प्रष्ठ 97 )
कवि को न हिंदी के संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग करने में कोई हिचकिचाहट है और न ठेठ उर्दू के शब्दों को प्रयोग करने में वह हिचकिचाता है। स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए जिस शब्द को उसने उचित और उपयुक्त समझा ,उसका प्रयोग किया तथा संग्रह को प्राणवान बनाने के लिए भाषा उसकी दृष्टि में एक औजार की तरह इस्तेमाल हुई है । रोजमर्रा की जिंदगी में थके-हारे आदमी को जहां इस काव्य संग्रह को पढ़कर कुछ राहत भरे क्षण नसीब होंगे, वहीं युद्धरत आम आदमी के जीवन में नए उजाले इस काव्य संग्रह से भर सकेंगे। यही तुम्हारे नेह के बल से की एक बड़ी उपलब्धि बन जाती है।
यह काव्य संग्रह पुस्तक श्री गिरिराज जी ने मुझे मुरादाबाद में उस समय चलते समय भेंट की थी ,जब मैं उनके निवास पर प्रसिद्ध कवि श्री नागार्जुन से भेंट करने के लिए गया था । पुस्तक पर 11 अगस्त 1990 की तिथि सप्रेम भेंट के रूप में अंकित है । यह जहां एक ओर श्री गिरिराज जी की आत्मीयता को दर्शाती है ,वहीं दूसरी ओर श्री नागार्जुन से भेंट की तिथि को पुनः स्मरण भी करा देती है।

809 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
संसार में कोई किसी का नही, सब अपने ही स्वार्थ के अंधे हैं ।
संसार में कोई किसी का नही, सब अपने ही स्वार्थ के अंधे हैं ।
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
अहं प्रत्येक क्षण स्वयं की पुष्टि चाहता है, नाम, रूप, स्थान
अहं प्रत्येक क्षण स्वयं की पुष्टि चाहता है, नाम, रूप, स्थान
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
व्यथा पेड़ की
व्यथा पेड़ की
विजय कुमार अग्रवाल
"साये"
Dr. Kishan tandon kranti
पितरों के सदसंकल्पों की पूर्ति ही श्राद्ध
पितरों के सदसंकल्पों की पूर्ति ही श्राद्ध
कवि रमेशराज
गुम है सरकारी बजट,
गुम है सरकारी बजट,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
कुछ बहुएँ ससुराल में
कुछ बहुएँ ससुराल में
Artist Sudhir Singh (सुधीरा)
प्यारी तितली
प्यारी तितली
Dr Archana Gupta
रंग हरा सावन का
रंग हरा सावन का
डॉ. श्री रमण 'श्रीपद्'
साधु की दो बातें
साधु की दो बातें
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*
*"माँ वसुंधरा"*
Shashi kala vyas
* मन कही *
* मन कही *
surenderpal vaidya
किसी मुस्क़ान की ख़ातिर ज़माना भूल जाते हैं
किसी मुस्क़ान की ख़ातिर ज़माना भूल जाते हैं
आर.एस. 'प्रीतम'
घर
घर
Dr MusafiR BaithA
दुनिया  की बातों में न उलझा  कीजिए,
दुनिया की बातों में न उलझा कीजिए,
करन ''केसरा''
*धनतेरस का त्यौहार*
*धनतेरस का त्यौहार*
Harminder Kaur
किताबों वाले दिन
किताबों वाले दिन
Kanchan Khanna
उस
उस"कृष्ण" को आवाज देने की ईक्षा होती है
Atul "Krishn"
Help Each Other
Help Each Other
Dhriti Mishra
आपसा हम जो दिल
आपसा हम जो दिल
Dr fauzia Naseem shad
#लघुकथा-
#लघुकथा-
*प्रणय प्रभात*
खो गया सपने में कोई,
खो गया सपने में कोई,
Mohan Pandey
पर्यावरण
पर्यावरण
Neeraj Mishra " नीर "
हार नहीं मानेंगे, यूं अबाद रहेंगे,
हार नहीं मानेंगे, यूं अबाद रहेंगे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बंदिशें
बंदिशें
Kumud Srivastava
*मोलभाव से बाजारूपन, रिश्तों में भी आया है (हिंदी गजल)*
*मोलभाव से बाजारूपन, रिश्तों में भी आया है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
2900.*पूर्णिका*
2900.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
शुभ प्रभात मित्रो !
शुभ प्रभात मित्रो !
Mahesh Jain 'Jyoti'
घर बन रहा है
घर बन रहा है
रोहताश वर्मा 'मुसाफिर'
भइया
भइया
गौरव बाबा
Loading...