पुस्तक समीक्षा ” चुप्पी का शोर “
लेखक मनोरथ महाराज की कृति “चुप्पी का शोर”
आंदोलित अंतस्थ भावनाओं की मुखर अभिव्यक्ति का एक अप्रतिम प्रयास है , वर्तमान समाज में व्याप्त विसंगतियों , संस्कारहीनता , अंधानुकरण , भ्रष्टाचार ,
शासन व्यवस्था , न्यायपालिका एवं कार्यपालिका की अकर्मण्यता के विरुद्ध आक्रोशित भाव रचना में प्रकट होते हैं।
कभी वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति पर सटीक कटाक्ष प्रस्तुत किया है , तो कभी पाठको को न्यायोचित संदेश से अवगत कराया गया है।
मानवीय संवेदना के मर्म के दर्शन भी रचनाओं में होते हैं ,
रचना “अभागिन” एवं “मजदूर” गरीबों की त्रासदी का मार्मिक दृश्य प्रस्तुत करते है, जो पाठकों भाव विहृल कर द्रवित करने में सक्षम सिद्ध होते हैं।
रचना “भूख” में उस कटु यथार्थ को स्पष्ट करने का प्रयास किया है , कि भूखे पेट के सामने नीती , आदर्श , संस्कार सब कोरी बातें लगतीं हैं। क्योंकि भूखे पेट की खातिर रोटी जुटाने का लक्ष्य ही सर्वोपरि है।
लेखक ने मानवता की सद्भावना एवं पुरुषार्थ की महत्ता का संदेश भी अपने लेखन के माध्यम से देने का प्रयास किया है , जो प्रसंशनीय है।
वर्तमान शासन व्यवस्था एवं न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं विसंगतियों पर रचनाएं “सिस्टमी चाल में चलना सीखो” एवं “जीत और हार ” तीखा व्यंग प्रस्तुत करतीं हैं , साथ ही अन्तर्निहित संदेश से पाठको अवगत कराया गया है।
नारी अस्मिता की रक्षा पर लेखक का चिंतन रचना
“मादा भ्रूण “में स्पष्ट होता है और समाज को एक सकारात्मक संदेश प्रस्तुत करता है।
लेखक का बाहृय जगत एवं अंतस्थ जगत के बीच संघर्ष रचना “अहम ब्रम्होस्मी” में परिलक्षित होता है।
जो भौतिकवाद एवं आध्यात्म के अन्तर को स्पष्ट करता है।
“एक अधूरी कविता” एवं ” कलम होगी कामयाब तभी” लेखक की निर्भीक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सार्थक लेखन विधा की प्रतिबद्धता को इंगित करती है।
निसर्ग के सौंदर्य का काव्य वर्णन रचना “प्रकृति” में
अतिसुंदर रूप से किया गया है।
लेखक की विधा बधाई पात्र है।
रचना “बेचारा पति” वर्तमान समाज में पति की भूमिका पर एक कटाक्ष प्रस्तुत करती है , साथ ही रचना में सकारात्मक संदेश है कि पति पत्नी एक ही गाड़ी के पहिए हैं और उनकी भूमिकाएं परस्पर एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं ।
एवं परिवार की गाड़ी को सुचारू रूप से चलाने के लिए उनकी एक दूसरे के परिपूरक भूमिकाऐं आवश्यक हैं।
रचना” बुढ़ापा ” में लेखक ने यह सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है कि व्यक्ति कितना भी
उम्र- दराज़ क्यों ना हो , यदि उसमें संकल्पित भाव है तो वह किसी भी उम्र में प्रतिबद्धता से अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है।
कुछ रचनाओं में लेखक ने आधुनिक समय में संस्कार विहीनता , और असंवेदनशीलता , सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों के ह्रास पर प्रकाश डाला है, जो उनके समाज के प्रति कर्तव्य- बोध को प्रकट करता है।
समग्र रूप से पुस्तक “चुप्पी का शोर” एक बहुआयामी काव्य संग्रह है , जो पाठकों को एक पठनीय कलेवर प्रदान करता है और उन्हें विभिन्न सामाजिक विषयों पर चिंतन को प्रेरित करता है।