पुस्तक समीक्षा : कतरा भर धूप(सुश्री अनुभूति गुप्ता)
पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक : कतरा भर धूप
लेखिका : सुश्री अनुभूति गुप्ता
संस्करण : प्रथम संस्करण(2017)
पृष्ठसंख्या : 96
मूल्य : ₹ 75/-
अभिरूचि की अभिव्यक्ति कहूँ या विचारों की गहनता कहूँ……..लेखन की उत्कृष्टता कहूँ या उसके प्रति समर्पण कहूँ …….नारी स्वातंत्र्य की पक्षधर कहूँ या व्यक्तित्व की संवेदनशीलता कहूँ……क्यों कि लेखिका ,कवयित्री, संपादक , समीक्षक और साहित्यकार सुश्री अनुभूति गुप्ता हमेशा की तरह ही एक नवीन और सार्थक काव्य-संग्रह “कतरा भर धूप” के साथ पुन : पाठकों के बीच उपस्थित हैं | इनकी यह पुस्तक यूँ तो कई महत्वपूर्ण विषयों को समेटे हुए है ,परन्तु मुख्य रूप से इसमें नारी की गरिमा ,शौर्य ,शुचिता और उसके त्याग एवं समर्पण की विशद् , तार्किक और भावपूर्ण विस्तृत अभिव्यक्ति है | कवयित्री सुश्री अनुभूति जी द्वारा प्रणीत यह पुस्तक सकारात्मक और विचारात्मक अभिव्यक्ति के साथ ही उत्कृष्ट विचारों की प्रेरणास्रोत के रूप में सशक्त पुस्तक बन पड़ी है | कुल 60 कविताओं के इस काव्य-संग्रह में लेखिका ने सरल एवं सार्थक शब्दों के माध्यम से सहज और भावपूर्ण अभिव्यक्ति को उजागर किया है | भावों की उत्कृष्ट और श्रेष्ठ अभिव्यक्ति को इंगित करती यह पुस्तक सहजता, सरलता ,विशिष्टता और बोधगम्यता के साथ ही व्यष्टि और समष्टि की उदात्त भावाभिव्यंजना को उद्घाटित करती है | यही नहीं , लेखिका ने नारी स्वातंत्र्य ,नारी-गरिमा, नारी-सशक्तिकरण ,नारी स्कंदन और नारी स्पंदन के साथ ही प्रकृति की महत्ता और जैवविविधता की उल्लेखनीय ,सोचनीय और अनुकरणीय पहल को उदात्त और भावपूर्ण शब्दों से अपनी लेखनी के माध्यम से पाठकों के मध्य पुन : परिष्कृत और विशद् रूप में रखने का सार्थक प्रयास किया है , जो कि इनकी विचारशील और संवेदनशील प्रवृत्ति को इंगित करता है |
तथ्य और कथ्य के काव्यात्मक स्वरूप में नवीन संधान के साथ ही आलोच्य पुस्तक में लेखिका ने अनेक ऐसे विचार पाठकों के लिए छोड़े हैं , जो मानव को मानवता से जोड़ते हैं | एक बानगी देखिए……
मायूस इलाकों से
उजड़ी हुई बस्तियों से
ढ़हाये गये मकानों से
बेचैन खंडहरों से…..
आज भी
झुलसाये गये
मासूमों की
दर्दनाक चीखें गूँजती हैं ||
इसी तरह दूसरी बानगी देखिए……..
जिन्दगी की दौड़ धूप में
मैदानों के धूल -धक्कड़ में
खिलते हुए
रिश्ते भी मुरझा गये
दूरियों के साये
जाने बीच में
कहाँ से आ गये ??
इस प्रकार इनकी पुस्तक में मानवीय संवेदना और रिश्तों के प्रति संवेदनशीलता के साथ ही नारी- महिमा , नारी-स्वातंत्र्य , कर्तव्यनिष्ठा और प्रकृति की महत्ता का संदेश तो विद्यमान है ही , साथ में विचार की गतिशीलता और अभिव्यक्ति की सहजता के साथ-साथ प्रकृति , संस्कति एवं नारी-विमर्श भी दृष्टव्य है | लेखिका ने स्वयं अपने अंत :करण के मूल में छिपी सोच और उद्देश्य को भली-भांति पहचानकर उसे आत्मसात् करते हुए अपनी लेखनी के माध्यम से पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है ,जो एक सर्वोत्तम और उल्लेखनीय कार्य है | बानगी देखिए……..
बरसों से –
स्त्री का
देह होना कठिन है
जन्म लेने से
मृत्यु होने तक ||
इसी प्रकार आत्मिक अनुभूति को भी सुश्री अनुभूति जी ने अपने काव्य-कर्म का मर्म बनाया है —
मेरे हिस्से की
कतरा भर धूप !
वो भी……….
मित्र छीन ले गया !!
समग्र रूप से कहा जा सकता है कि सुश्री अनुभूति गुप्ता जी ने सार्थक और सारभूत विषयों को आत्मसात् करते हुए उनकी सर्वकालिक महत्ता को पुस्तक के रूप में परिणीत करते हुए पाठकों के सामने उचित निर्णय करने हेतु प्रस्तुत किया है | आशा है प्रबुद्धजन पाठकों को यह पुस्तक पसंद आएगी |
जय हिन्द ! जय भारती !
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डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”
लेखक , कवि , साहित्यकार , समीक्षक , संपादक एवं जैवविविधता विशेषज्ञ
सम्प्रति
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खण्ड सहकारिता निरीक्षक
एवं
महाप्रबंधक , लक्ष्मणगढ़ क्रय विक्रय सहकारी समिति लि० , लक्ष्मणगढ़ (सीकर) , सहकारिता विभाग, राजस्थान सरकार |
ग्राम-पोस्ट – ढ़ोसी
तहसील – खेतड़ी
जिला – झुन्झुनू (राज०)- 333036
मो० — 9461535077
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