Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Apr 2023 · 5 min read

पुस्तक समीक्षा – अंतस की पीड़ा से फूटा चेतना का स्वर रेत पर कश्तियाँ

अंतस की पीड़ा से फूटा चेतना का स्वर – रेत पर कश्तियाँ

कविता पढ़ना अच्छा लगता है, उसके भाव में बहना अच्छा लगता है। मनः स्थिति को कविता के शब्दों के साथ महसूस करना अच्छा लगता है, कविताऍं समस्या का समाधान बताती हैं,थके मन में स्फूर्ति देती हैं, कविताऍं जीवन की परिभाषा बताती हैं। लेकिन कविताओं की प्रकृति और उनके भाव मानव मन को कविता की प्रकृति के अनुसार ही प्रभावित करते हैं। जिस प्रकार की रचनाऍं होती हैं उनको समझने और महसूस करने के लिए वैसे ही मन की आवश्यकता भी होती है।
“रेत पर कश्तियाँ” काव्य संग्रह श्याम निर्मोही जी का प्रथम एकल काव्य-संग्रह है। इससे पहले निर्मोही जी “सुलगते शब्द” साझा काव्य संकलन और “सूरजपाल चौहान की प्रतिनिधि कहानियाॅं” का सफल संपादन कर चुके हैं। “रेत पर कश्तियाँ” जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है कि कवि रचनाओं के माध्यम से असंभव को संभव करना चाहते हैं । काव्य-संग्रह में करीब 65 रचनाऍं गज़लनुमा नज़्में और कविताओं के रुप में सम्मिलित हैं ।

श्याम निर्मोही सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर कवि हैं। संग्रह की प्रथम कविता ‘फिर से चले उन पगडंडियों पर’ के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि -“समाज में जो कुछ भी घटित हो रहा है वो सब इसलिए क्योंकि हमने अपने पूर्वजों का अनुसरण करना छोड़ दिया है, इसलिए कवि आह्वान करता है कि हमें फिर से उन्हीं रास्तों का अनुसरण करना चाहिए।”

आओ/फिर से /हम भी चले/उन रास्तों पर /उन पगडंडियों पर /उन पद चिह्नों पर / जिस पर कभी हमारे पुरखे/ गौतम बुद्ध, बाबा साहेब, और दीना भाना व कांशीराम चले थे।

कवि का मानना है कि गौतम बुद्ध, बाबा साहेब, दीना भाना और कांशीराम का रास्ता इस समाज में परिवर्तन ला सकता है इसलिए उनका अनुसरण करना चाहिए ।

कवि ने जो रचनाऍं रची हैं वे कोरी कल्पना नहीं है बल्कि ये महसूस की गई परिस्थिति हैं जिनको कवि ने शब्दों में बांधकर कविता का रूप दे दिया है। प्रत्येक कविता को पढ़कर महसूस होता है कि कवि कुछ ऐसा चाहता है जो उसे वर्षों से नहीं मिला है, एक प्रकार का आक्रोश प्रत्येक रचना में दृष्टिगोचर होता है‌, कवि लिखता है-

“आखिर कब तक सहेंगे/ कब तक गूॅंगे बने रहेंगे /जब तक सहते रहेंगे/अन्यायी बढ़ते रहेंगे/ हिंसक व्याल क्रूर होते रहेंगे/ देख निर्दोषों के शव उबलता हूॅं/ मैं विप्लव रचता हूॅं।”

कवि समाज में खुशहाली चाहता है, वह इंसानियत को सर्वोपरि मानता है और दूसरों को खुश रखने में वास्तविक खुशी महसूस करता है-

“किसी तरह का अभाव ना हो बस भाव ही भाव हो,
आत्म समर्पण की भावना हो, इंसानियत से लगाव हो,
हिंसा नफरत की भावनाऍं, हृदय से मिट जाए।”

निर्मोही चाहते हैं कि हमें गरीब और मज़लूमों के काम आना चाहिए, किसी रोते हुए चेहरे को हॅंसाना चाहिए,कवि लिखते हैं-

“किसी रोते हुए चेहरे की मुस्कान बनो।
दबे, कुचले, मज़लूमों की जुबान बनो।
क्यों करते हो हंगामा कौम के नाम पर,
बनना ही है तो एक अदद इंसान बनो।”

कवि अपनी कविता के माध्यम से प्रेमचंद्र द्वारा लिखी गई कहानी ‘कफ़न’ पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं, और कहते हैं कि-‘मैंने भी इसी समाज में जीवन जिया है, किंतु जैसे किरदारों का वर्णन मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानी ‘कफ़न’ में किया है वैसे किरदार मैंने कहीं पर नहीं देखे हैं, लगता है प्रेमचंद ने एक विशेष वर्ग को नीचा दिखाने के लिए इस प्रकार की कहानी रची है।
निर्मोही मानते हैं कि केवल समय और साल बदले हैं, व्यक्ति की मानसिकता नहीं बदली वह विकृत रही है और रहेगी, समाज के वंचितों के लिए जो मापदंड तय किए हुए हैं उनमें बदलाव नहीं आ रहा है।
कवि मानते हैं कि समाज में बदलाव के लिए-

“पथ को रोशन करने के लिए
तम को ओझल करने के लिए
मोम की तरह जलना होगा
मोम की तरह पिघलना होगा।”

समाज में स्वयं के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए मनुष्य को आग में तपना होगा। कोई अन्य उसके हक-हकूक की लड़ाई नहीं लड़ेगा बल्कि उसे स्वयं ही लड़ना होगा।

कवि ‘दलित हूॅं न साहब’ नामक कविता के माध्यम से समाज में दलितों पर होने वाले अत्याचार और शोषण को लिखता है। जिसमें गाॅंव में घोड़ी पर न बैठने देना, मूॅंछे न रखने देना, होटल/ ढाबे पर स्वतंत्रता पूर्वक खाना न खाने देना, सार्वजनिक कुऍं/ नलकूपों से पानी न पीने देना जैसी समस्याऍं आम हैं। कवि समाज में दलितों की स्थिति से व्यथित है।
कवि ‘कब आएगा वो सवेरा ?’ कविता में लिखता है-

“कब आएगा वो सवेरा ?
जब मेरी बस्ती के बच्चे पढ़ने जाएंगे,
अपना कल, अपना भविष्य गढ़ने जाएंगे।”

कवि समाज में ऊंच-नीच, छुआछूत, बेईमानी, भ्रष्टाचार से परेशान हो चुका है। इसके लिए वे अपनी कविता ‘तुम्हें फिर से आना होगा’ में महात्मा बुद्ध से प्रार्थना करते हैं कि- तुम्हें फिर से आना होगा और-

“चहुॅं और बरसाना प्यार ही प्यार,
धुल जाए सारे विषय-विकार
ऐसे उपदेश हमें सुनाना
हम तुम्हें बुला रहे हैं बुद्ध
तुम्हें फिर से आना होगा।”

‘रेत पर कश्तियाँ’ कविता जो कि पुस्तक का शीर्षक भी है, में कवि समाज के ठेकेदारों से प्रश्न करता है कि -“तुम समाज के वंचित वर्गों को झूठी तसल्ली कब तक दोगे ? अर्थात उन्हें सच्चाई से रूबरू होने से रोक नहीं पाओगे और जिस दिन वे सच्चाई से रूबरू होंगे उस दिन समाज में सकारात्मक परिवर्तन होगा और गरीबों मजदूरों को उनके हक़-हकूक मिल जाएंगे। कवि कविता ‘भीम होने का अर्थ’ में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के जीवन और संघर्ष को वर्तमान परिदृश्य में लिखते हैं, उनका मानना है कि हम भीमराव अंबेडकर को वास्तविक रूप से तब जान पाएंगे जब उनके जैसे शोषण व अत्याचारों को स्वयं सहन करेंगे। उनके द्वारा वंचितों को दिए गए अधिकारों का भी वास्तव में तभी पता चलेगा जब हम बाबा साहब के जीवन और उनके कार्यों को समझेंगे।

श्याम निर्मोही वंचित समुदाय की एकता के पक्षधर हैं। भीमराव अंबेडकर जी भी चाहते थे कि सभी वंचित जातियाॅं एक हो जाए। वहीं ये समुदाय वर्तमान में अलग-अलग गुटों व विचारधारा में बंटे हुए हैं, इन्हें एक हो जाना चाहिए तभी इनका उद्धार संभव है।

कवि चुनाव में वोट के नाम पर दिए जाने वाले लालच का विरोध करता है। कवि मानता है कि वोट के लिए नेता शराब और पैसे का लालच देकर वोट लेता है फिर सत्ता के वर्षों में वह कोई कार्य नहीं करता है,कवि लिखता है –

“वोट के बदले बस्ती में वो फिर शराब दे गया।
तुम्हारे हक-हकूक तुम्हारे सब ख्वाब ले गया।”

कवि माॅं के महत्व को कविता ‘माॅं कभी नहीं हारती’ में लिखते हैं कि माँ रूखा-सूखा भोजन करके भी अपने बच्चों को पढ़ाती है। पूरा जीवन संघर्ष करती है किंतु बुढ़ापे में उसकी संतान उसका सहारा नहीं बनती है। कवि माॅं के साथ पिता को भी अपने काव्य में स्थान देता है और मानता है कि मैं पिता के महत्व को समझ नहीं पाया मुझे आपका कठोर स्वभाव कठोर ही लगा जबकि उसके अंदर छुपे आपके प्यार को मैं पहचान नहीं सका।

काव्य संग्रह की प्रत्येक रचना पठनीय और विचारणीय है। संग्रह की भूमिका हिंदी साहित्य के वरिष्ठ हस्ताक्षर डॉ. जयप्रकाश कर्दम, डॉ. सुशीला टाकभोरे, डॉ. कुसुम मेघवाल, दामोदर मोरे जी ने लिखी हैं। संग्रह पर वर्तमान में ख्याति प्राप्त साहित्यकारों ने टिप्पणियाॅं दी हैं। एक प्रकार से ‘रेत पर कश्तियाँ’ काव्य संग्रह स्वयं में बहुत कुछ समेटे हुए हैं। पुस्तक भविष्य में हिंदी साहित्य के शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी।

पुस्तक का नाम – रेत पर कश्तियाँ
रचयिता – श्याम निर्मोही
प्रकाशक – कलमकर पब्लिशर्स प्रा. लि. दिल्ली
संस्करण – प्रथम (2022)
मूल्य – ₹250
कुल पृष्ठ – 159

समीक्षक – डॉ. दीपक मेवाती
मेवात (हरियाणा)

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 385 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बुरा वक्त आज नहीं तो कल कट जाएगा
बुरा वक्त आज नहीं तो कल कट जाएगा
Ranjeet kumar patre
नारी पुरुष
नारी पुरुष
Neeraj Agarwal
"बहादुर शाह जफर"
Dr. Kishan tandon kranti
" दिल गया है हाथ से "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
अलसाई सी तुम
अलसाई सी तुम
Awadhesh Singh
सब खो गए इधर-उधर अपनी तलाश में
सब खो गए इधर-उधर अपनी तलाश में
Shweta Soni
हर  तरफ  बेरोजगारी के  बहुत किस्से  मिले
हर तरफ बेरोजगारी के बहुत किस्से मिले
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
यह दुनिया समझती है, मै बहुत गरीब हुँ।
यह दुनिया समझती है, मै बहुत गरीब हुँ।
Anil chobisa
गीता जयंती
गीता जयंती
Satish Srijan
CISA Certification Training Course in Washington
CISA Certification Training Course in Washington
mayapatil281995
कोई दरिया से गहरा है
कोई दरिया से गहरा है
कवि दीपक बवेजा
हर हाल मे,जिंदा ये रवायत रखना।
हर हाल मे,जिंदा ये रवायत रखना।
पूर्वार्थ
पसंद प्यार
पसंद प्यार
Otteri Selvakumar
*अलविदा तेईस*
*अलविदा तेईस*
Shashi kala vyas
ज़िंदगी क्या है ?
ज़िंदगी क्या है ?
Dr fauzia Naseem shad
काल  अटल संसार में,
काल अटल संसार में,
sushil sarna
*बाल गीत (मेरा मन)*
*बाल गीत (मेरा मन)*
Rituraj shivem verma
किसी के सम्मान या
किसी के सम्मान या
*प्रणय*
तेरी खुशियों में शरीक
तेरी खुशियों में शरीक
Chitra Bisht
नफरतों से अब रिफाक़त पे असर पड़ता है। दिल में शक हो तो मुहब्बत पे असर पड़ता है। ❤️ खुशू खुज़ू से अमल कोई भी करो साहिब। नेकियों से तो इ़बादत पे असर पड़ता है।
नफरतों से अब रिफाक़त पे असर पड़ता है। दिल में शक हो तो मुहब्बत पे असर पड़ता है। ❤️ खुशू खुज़ू से अमल कोई भी करो साहिब। नेकियों से तो इ़बादत पे असर पड़ता है।
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
शहर के लोग
शहर के लोग
Madhuyanka Raj
मन की सूनी दीवारों पर,
मन की सूनी दीवारों पर,
हिमांशु Kulshrestha
गुरु गोविंद सिंह जी की बात बताऊँ
गुरु गोविंद सिंह जी की बात बताऊँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
धार्मिक सौहार्द एवम मानव सेवा के अद्भुत मिसाल सौहार्द शिरोमणि संत श्री सौरभ
धार्मिक सौहार्द एवम मानव सेवा के अद्भुत मिसाल सौहार्द शिरोमणि संत श्री सौरभ
World News
सोना बन..., रे आलू..!
सोना बन..., रे आलू..!
पंकज परिंदा
*छपवाऍं पुस्तक स्वयं, खर्चा करिए आप (कुंडलिया )*
*छपवाऍं पुस्तक स्वयं, खर्चा करिए आप (कुंडलिया )*
Ravi Prakash
जैसे कि हर रास्तों पर परेशानियां होती हैं
जैसे कि हर रास्तों पर परेशानियां होती हैं
Sangeeta Beniwal
2959.*पूर्णिका*
2959.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सच्चाई है कि ऐसे भी मंज़र मिले मुझे
सच्चाई है कि ऐसे भी मंज़र मिले मुझे
अंसार एटवी
प्यार करोगे तो तकलीफ मिलेगी
प्यार करोगे तो तकलीफ मिलेगी
Harminder Kaur
Loading...