पुस्तक भूमिका : महाभारत प्रसंग
भूमिका
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भारतीय पुरातन सभ्यता , संस्कृति, संस्कार और सद्गुणों के आलोक में महान् विभूतियों के कर्म और मर्म को जानकर उन्हें पुन: प्रतिष्ठित करते हुए सुरूचिपूर्ण ,सार्थक, सकारात्मक और प्रेरणास्पद लेखन की उत्कृष्टता और उसके प्रति समर्पण के लिए सर्वप्रथम मैं लेखक , संपादक , समीक्षक , और सामाजिक कार्यकर्ता श्री मनोज अरोड़ा जी का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ और आभार प्रकट करता हूँ कि वे पाठकों के बीच अपनी पुस्तक “महाभारत प्रसंग” के साथ न केवल रूबरू हो रहे हैं अपितु मानवीय चेतना के प्रबल समर्थक बनकर उनके पथ-प्रदर्शक भी बने हैं | इनकी यह पुस्तक ” महाभारत प्रसंग ” स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा 1 फरवरी ,1900 ई० को अमेरिकी राज्य कैलीफोर्निया में स्थित पैसाडेना नामक स्थान में “शेक्सपियर की सभा” में दिये गये भाषण की विशद् , श्रेष्ठ और भावपूर्ण सारभूत अभिव्यक्ति तो है ही , साथ ही शिक्षा ,संस्कार ,कर्तव्यता , नैतिकता और मानवीय मूल्यों को समेटे हुए एक विशिष्ट पुस्तक भी है , क्यों कि लेखक की यह नीतिमीमांसीय पुस्तक ऐतिहासिकता को आत्मसात् करती हुई मूल्यात्मक और विचारात्मक अभिव्यक्ति की सरलता और सहजता को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करती है | कुल 15 अध्यायों में वर्गीकृत इस पुस्तक में लेखक ने सार्थक एवं सहज भावों के माध्यम से भावपूर्ण लेखन के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है | मुझे इस बात का हर्ष भी है कि मैं इस पुस्तक का प्रथम पाठक हूँ | अरोड़ा जी की इस पुस्तक में न केवल सहजता और सरलता है अपितु उदात्त मानवीय गुणों का गहन मंथन भी है | वह मंथन जो वर्तमान समय की आधारभूत मांग भी है और आधारशिला भी | क्यों कि वर्तमान आधुनिक और भौतिक चकाचौंध में मानवीय मूल्यों का अस्तित्व डगमगा रहा है |
इस क्रम में प्रस्तुत पुस्तक को यदि मैं संजीवनी कहूँ तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्यों कि लेखक ने अनेक ऐसे गहन बिन्दुओं को अपनी लेखनी में जकड़कर उनका विशद् विस्तारित वर्णन यथास्थान सामान्य किन्तु रोचक रूप से किया है | उदाहरण के लिए राष्ट्रीय चेतना , नैतिक मूल्य , नारी-स्वातंत्र्य , कर्मठता , कर्तव्यता ,और मानवीय उदात्तता जैसे बहुआयामी और आवश्यक विषयों का वर्णन लेखक ने उदार भाव से गतिशीलता और सृजनात्मकता के साथ किया है | उल्लेखनीय बात यह है कि लेखक ने स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण के मूल में छिपी सोच और उद्देश्य को समझते हुए सारभूत संग्रह के रूप में इस पुस्तक को सुधी पाठकों के समक्ष प्रेषित किया है ,जो अपने आप में बेहतरीन है |
समग्र रूप से कहा जा सकता है कि उत्कृष्ट भावबोध एवं उच्च मानवीय चिन्तन से समन्वित सारभूत विषयों को आत्मसात् करती अरोड़ा जी की यह पुस्तक स्वामी जी के उपदेशों को पुन : शब्द प्रदान करती है | इस श्रेष्ठ पुस्तक के लिए मैं इन्हें पुन: हृदय से बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि अपनी सशक्त और विस्तारित सोच को सदैव लेखन के माध्यम से पाठकों के बीच में लाते रहेंगे | अनन्त हार्दिक शुभकामनाओं के साथ……….
डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”
ढ़ोसी , खेतड़ी, झुन्झुनू (राजस्थान) खण्ड सहकारिता निरीक्षक , सहकारिता विभाग , राजस्थान सरकार
एवं
कवि , लेखक , समीक्षक, संपादक , साहित्यकार एवं जैवविविधता विशेषज्ञ
मो ० – 9461535077