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25 Jul 2020 · 6 min read

पुस्तक : कब तक मारे जाओगे (जाति व्यवस्था के घिनौने रूप को ढ़ोने वाले समुदाय पर केंद्रित काव्य संकलन) पर पहली टिप्पणी हरी बाबू नरवार जी की कलम से

पुस्तक समीक्षा …

आपके द्वारा संपादित पुस्तक ‘कब तक मारे जाओगे’ (जाति व्यवस्था के घिनौने रूप को ढ़ोने वाले समुदाय पर केंद्रित काव्य संकलन) जो सफाई कर्मचारियों पर केंद्रित है। इस तरह का प्रयास पहले कभी किसी ने नहीं किया जो कि पूरी पुस्तक में एक खास वर्ग सफाई कामगार समाज के दर्द, पीड़ा और प्रताड़ना को एक साथ उकेरा हो। इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। आपका दिल से आभार और बहुत सारी शुभकामनाएं कि आप आने वाले समय में भी इस सफाई कामगार समाज पर अपनी लेखनी कलम बंद करते रहेंगे, चलाते रहेंगे।
आपने गजब का संपादकीय लेख लिखा है। संपादकीय लेख में आप पहले ही पेज पर ही लिखते हैं कि “सफाई कर्मचारियों के मात्र पैर धोने से इस समाज का भला नहीं हो सकता साहब।” इस साहब शब्द में ही सारी व्यवस्था समाई हुई है जो आपने बेहद ही खूबसूरती से इशारा कर दिया है। संक्षेप में आपने दो विचारधाराओं की तरफ इंगित किया है एक विचारधारा का रास्ता पतन, जिल्लत की जिंदगी और हजारों वर्षों वाली अमानवीय व्यवस्था वर्ण व्यवस्था यानी (सफाई, मैंला, घर्णित कार्य करने वाले कार्य की तरफ ले जाने वाली है) और दूसरी विचारधारा बाबा साहब अंम्बेडकर की जिसका रास्ता उन्नति, प्रगति, समानता, बंन्धुत्व और प्रकाश की ओर ले जाने वाला है। “जिन्हें अंधकार का एहसास नहीं वो भला प्रकाश की खोज क्यों करेंगे”? बाबा साहब की विचारधारा प्रकाश की और ले जाने वाली है। बेहतरीन, लाजवाब, शानदार आपने अपने संदेश में बाबा साहब की विचारधारा को अपनाने का संदेश दिया है। अति सुंदर और बेहतरीन संपादकीय लेख आपने लिखा है। इसके लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं।

संपादकीय लेख लिखने से पहले ही आपने प्रख्यात इतिहास खोजी लेखक श्री देव कुमार जी द्वारा बनाया गया बेहतरीन, लाजबाव सफाई कामगार समुदाय के राजनैतिक भविष्य की ओर संकल्पित वाला चित्र लगाया है और उनकी ओजश्वी रचना को यहां स्थान दिया है। इस चित्र में झाड़ू नीचे थोड़ा ऊपर कलम और चित्र में सबसे ऊपर मुकुट प्रदर्शित किया है जो बाबा साहब चाहते थे, इस देश के राजा बनना है और नीचे एक बेहतरीन ओजस्वी देवकुमार जी का संदेश।

वोट से लेकर राज तक
झाड़ू से लेकर ताज तक
एक दो सीटों की जंग नहीं ये
हमें लड़ना है साम्राज्य तक…

बहुत बेहतरीन इस उद्घोष को और आपके संपादकीय लेख को पढ़कर पुस्तक को आगे पढ़ने की बहुत जिज्ञासा बढ़ जाती है। इस काव्य संकलन में बासठ कवियों की एक सौ उन्नीस रचनाओं को आपने शामिल किया है, जो सभी सफाई कर्मचारियों से संबंधित हैं।

आपने अपनी रचनाओं को पुस्तक में बहुत ही करीने से, तरीके, बहुत ही व्यवस्थित और क्रमानुसार स्थान दिया है। आपके दिल में समाज के प्रति कितनी पीड़ा समाई हुई है, ये आपकी रचनाओं को पढ़कर ही पता चलता है। यानि जिस बंदे पर जो गुजरती है वही इन रचनाओं के माध्यम से उस दुःख, दर्द, पीड़ा, गम, खुशी आदि को महसूस कर प्रकट कर सकता है। आपकी रचनाओं को पढ़कर मुझे मशहूर लेखक मक्सिम गोर्की की एक कहानी की कुछ लाइनें याद आ रही है। नमक के दलदलों कहानी में मजदूर गोर्की से नमक बनाने की प्रक्रिया को इंगित कर कहता है, केवल पांच साल तक ऐसा जीवन बिताओ देखो कुछ भी मानवीय नहीं रहेगा, तुम पूर्णतः जानवर बन जाओगे। हम तो कहते हैं बस एक दिन स्वच्छता अभियान चलाने वाले सफाई कर्मचारी का जीवन जी कर देख ले पता चल जाएगा। आप अपनी पहली ही रचना खोखली बातों में लिखते हैं।

विश्व में भारत का
ढ़का बजाने
वालों,

साहब पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर, दुनिया देखकर, भ्रमण कर आ गए, लेकिन यहां इस अमानवीय व्यवस्था को न देख सके।

अभी भी देश के नागरिक
अमानवीय कार्य कर रहे हैं।
अफसोस रोज सीविरों में मर रहे।

व्यवस्था की आंखें खोलने को इंगित किया है। दुनिया घूमी, देखी मशीन का प्रयोग कर सकते है लेकिन नहीं व्यवस्था ने इस वर्ग के खिलाफ जानबूझकर आंखें बंद कर रखी हैं। आप आगे लिखते हैं।
तुम्हारी इन बड़ी-बड़ी बातों को पूरी दुनिया सुन रही है।और तुम्हारे इस घोर कृत्य पर
पूरी मानवता शर्मसार हो रही है।
बहुत ही बढ़िया, लाजबाव,अति सुंदर।

पहरी रचना में व्यवस्था और दूसरी रचना में आपने अमानवीय काम में लगे सफाई कर्मचारियों को ललकार भरे अंदाज में समझाने और संदेश देने का प्रयास किया है।

आखिर कब तक
सहोगे ये जुल्म
कब तक रहोगे
ख़ामोश?

सदियों से यह मैला सफाई, सीवर का कार्य किए जा रहे हैं। अब तो आपकी रक्षा के लिए बाबा साहब महामानव ने संविधान भी दे दिया है। आगे की लाइन में आपने फिर बेहतरीन ललकार भरा संदेश दिया है।

सुनो सफाई कर्मचारियों।
अब बजा दो विगुल
इन गंदे कामों के
खिलाफ?
एक क्रांति की ओर इंगित और आव्हान किया है।

छोड़ दो नामक रचना में भी व्यवस्था को मशीनों द्वारा इस घृणित कार्य को करवाने की तरफ आपका इशारा है।
आप इंगित करते हैं और इस घृर्णित और अमानवीय कार्य में लगे लोगों की आने वाली पीढ़ी की भी आपके मन में, हृदय में बहुत ही गहरी पीड़ा और चिंता सता रही है। इसलिए आप कठोर शब्दावली के प्रयोग से भी नहीं चूकते। आप लिखते हैं।

छोड़ दो,
त्याग दो।
सफाई से सम्बन्धित इन गंदे कामों को
ताकि ‘तुम्हारे आने वाली नस्लें और पीढ़ियां स्वाभिमान से सर उठाकर जी सके।’ लाजबाव, बेहतरीन संदेश !

उजाले की ओर यह भी आपकी एक बेहतरीन रचना है। इसमें आप एक संदेश देते हैं। आगे बढ़ने का बाबा साहब के दिखाए रास्तों को अपनाते हुए बढ़ाने होंगे अपने कदम उजाले की ओर रचना में लिखा है जो कौम अपना इतिहास भूल जाती है, वह इतिहास नहीं बना पाती। इस कविता में इस रचना में आपने इतिहास जो हमारे पूर्वज जो एक से एक बाबा साहब, फूले, बिरसा मुंडा, मातादीन आदि अनेक पूर्वज पैदा हुए हैं, उनकी तरफ इंगित किया है। आगे आपकी कविता हिसाब में आपने दो प्रथाओं को एक दान प्रथा और एक बेगार प्रथा। बेगार प्रथा जिसके द्वारा दलित वर्ग के ऊपर अत्याचार और शोषण होता आया है।

आपके द्वारा लिखित अगली रचना लाठी
इस पुस्तक की बहुत ही महत्वपूर्ण रचना है इसमें पूरा एक महत्वपूर्ण कालखंड समाया है, जिसमें इतिहास में पहली बार बाबा साहब अम्बेडकर की अगुवाई में दलितों ने अपने लिए कुछ अधिकार मांगे थे जिनको पूर्ण नहीं होने दिया गया।

एक तरफ लाठी की विचारधारा।
भंगियों के बारे में लाठी की विचारधारा पढ़कर मुझे उनसे घृणा होने लगी। महान भंगी समाज के साहित्यकार ‘भगवानदास साहब’ द्वारा लिखित।
लाठी की हकीकत पूना पैक्ट 24/09/1932 और बाबा साहब को पढ़कर समझ में आती है। बहुत ही बारीकी से आपने इंगित किया है लाठी की विचारधारा जो पतन, जिल्लत भरी जिंदगी और हजारों वर्षों की अमानवीय व्यवस्था की ओर धकेलने वाली सोच है।

अहिंसा का
पाठ पढ़ाने वाला,
पुनर्जन्म में भंगी के घर
पैदा होने फर्जी इच्छा जताने वाला।

लेखक सवाल करता है,आखिर पुनर्जन्म में ही क्यों? अभी क्यों नहीं इस भंगी के कार्य को करते हैं? क्योंकि ये चालाक लोग जानते हैं पुनर्जन्म इनकी सब साजिश है। कोई पुनर्जन्म होता ही नहीं, इसलिए ये पुनर्जन्म की बात करते हैं। इसी कालखंड में बाबा साहब की हमारे लिए विचारधारा का रास्ता, उन्नति और उजाले की और ले जाने वाला है। आने वाला पीढ़ियां बाबा साहब अम्बेडकर की विचारधारा पर चलकर आगे बढ़ सकती है।

मेरे पास शब्द नहीं है। आपकी सारी की सारी रचनाएं एक से बढ़कर एक और बहुत ही व्यवस्थित तरीके से आपने पुस्तक में इनको स्थान दिया है। लाजवाब बेहतरीन अति सुंदर व्यवस्था और इस कार्य में लगे लोगों को अंदर तक झकझोर करने वाली आप की सभी रचनाएं हैं।
आप यूं ही लिखते रहें, व्यवस्था और इस घृर्णित, अमानवीय सफाई पेशा कार्य में लगे लोगों को जगाते रहे।
आपका यह कार्य आने वाली नश्ल और पीढ़ियां हमेशा याद रखेंगी।

पुस्तक : कब तक मारे जाओगे (जाति-व्यवस्था के घिनौने रूप को ढोने वाले समुदाय पर केन्द्रित काव्य-संकलन)
संपादक : नरेन्द्र वाल्मीकि
पृष्ठ संख्या : 240
मूल्य : ₹120
प्राकाशक : सिद्धार्थ बुक्स (गौतम बुक सेंटर), दिल्ली।

अनंत शुभकामनाओं सहित
हरी बाबू नरवार
उत्पादन विभाग
इंडियन आयल कार्पोरेशन लिमिटेड
मथुरा रिफायनरी मथुरा।
7248230754

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 4 Comments · 507 Views
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