पुस्तकों की पीड़ा
दोहे
1
पाठक कोई ना रहा , लेखक की भरमार
बिकती है अश्लीलता, मोबाइल से प्यार
2
क्यों सच्चा साहित्य अब , बिकता नहि बाजार
तुलसी सूर कबीर की, वाणी हुई बेकार
3
पुस्तक सच्ची मित्र थी, हुई उपेक्षित आज
व्हाट्स ऐप और फेस बुक, का नाजायज राज
4
सभी पढ़ाना चाहते, पाठक मिला ना कोय
कबीर देख बाजार को , बार बार दे रो या
5
अच्छी पुस्तक जो पढ़े , उसका दूर तनाव
पैसा दे साहित्य की , पुस्तक तुरत मगाव