पुश्तैनी दौलत
कमाते कैसे हैं करके कोशिश,
उन्हें पता करते जो मसक्कत।
मिली पुश्तैनी हो दौलत उनका,
गुरूर सर चढ़ के बोलता है।
उन्हें खबर क्या है भाव कितना,
नमक तेल आटा दाल लकड़ी।
कहाँ तजुर्बा उन्हें बोझ का,
जिन्हों ने ज़र्रा तक न उठाया।
अगर अता कर दिया है रब ने,
किया कराया मिला बहुत जब।
उठे हाथ शुक्र जकात खातिर,
अकड़ कर ऐसे क्यूँ डोलता है।
मिली पुश्तैनी हो दौलत उनका,
गुरूर सर चढ़ के बोलता है।
नज़र से अपनी जहां को देखो,
रोज है कितना बदल रहा सब।
खिजां बहारें रहें न सब दिन,
यहां पर कुछ नहीं लाफानी।
तुझे मुबारक पोषक शाही,
पहन के संवरो और मुस्कराओ।
मगर छुपाता फिरे जो अपनी,
उसका पेवन्द क्यों खोलता है।
मिली पुश्तैनी हो दौलत उनका,
गुरूर सर चढ़ के बोलता है।
तेरी जिंदगी का मोल क्या है,
अगर जानना तो खोज रहबर।
सही हमनवां मिले गर सृजन,
कदम कदम राज सब खोलता है।
मिली पुश्तैनी हो दौलत उनका,
गुरूर सर चढ़ के बोलता है।