पुलिस की ट्रेनिंग
पुलिस की ट्रेनिंग
सिपाही की नौकरी पाने के बाद रामलाल को जिस थाने में पहली पोस्टिंग मिली, वहाँ के थानेदार साहब उससे पुत्रवत स्नेह रखते थे। रामलाल भी थानेदार साहब को पितातुल्य मानते हुए उनसे पुलिसिया दाँव-पेंच सीख रहा था।
थानेदार साहब जब भी फील्ड में जाते, उसको साथ में जरूर ले जाते। रामलाल को जीप चलाना भी आता था, इस कारण भी थानेदार साहब ड्राइवर की बजाय उसे ही साथ लेकर अक्सर निकल जाते थे।
ऐसे ही दोनों एक बार कहीं जा रहे थे, तो उन्होंने रास्ते में देखा कि कोई दुपहिया चालक दुर्घटनाग्रस्त होकर बीच सड़क पर पड़ा अंतिम साँसें ले रहा है। प्रथम दृष्टया दुपहिया वाहन पुराना व जर्जर हालत में और चालक कोई गरीब मजदूर लग रहा था।
रामलाल ने मौका-ए-वारदात पर गाड़ी खड़ी कर दी। पर ये क्या ? थानेदार साहब तो भड़क उठे, “गाड़ी क्यों रोक दी रामलाल ?”
रामलाल सामने ईशारा करते हुए बोला, “सर, लगता था कि कोई फोर व्हीलर वाला इसे ठोंक कर निकल गया है। शायद अभी यह जिंदा है…”
थानेदार साहब बीच में उसकी बात काटते हुए बोले, “तो… किसी ने एफ.आई.आर. दर्ज कराई है ?”
“नो सर।” थूक निगलते हुए रामलाल बोला।
“तो चलो यहाँ से। जब एफ.आई.आर. दर्ज कराई जाएगी, तब हमारी ड्यूटी शुरू होगी। अभी कुछ भी करोगे, तो पब्लिक इस दुर्घटना के लिए हमें ही जिम्मेदार ठहराएगी। समझ गए।”
“जी सर।” रामलाल बोला।
वे आगे निकल गए। थोड़ी ही दूरी पर बीच सड़क पर पड़ा एक और दुपहिया चालक अंतिम सांसें ले रहा था। प्रथम दृष्टया युवक किसी अमीर परिवार का लग रहा था। दुपहिया गाड़ी भी एकदम नई और महंगी लग रही थी।
रामलाल साइड से जीप निकालने ही वाला था कि थानेदार साहब बोल पड़े, “रूक-रूक-रूक….”
“क्या हुआ सर ?” गाड़ी रोककर रामलाल पूछ बैठा।
थानेदार साहब बोले, “सामने देखो। लगता है कोई फोर व्हीलर वाला इसे ठोंककर भाग गया है। शायद अभी ये जिंदा है।”
रामलाल बोला, “लेकिन सर, अभी तक किसी ने एफ.आई.आर. तो दर्ज कराया ही नहीं, फिर….”
थानेदार साहब बोले, “देश, काल और परिस्थिति के मुताबिक एक ईमानदार पुलिस अफसर को अपने विवेक से भी काम करना पड़ता है। देखो, ये किसी अच्छे खाते-पीते परिवार का लगता है। चलो, देखते हैं।”
थानेदार ने युवक की जेब में हाथ डालकर उसका मोबाइल निकाला। एप्पल की लेटेस्ट मॉडल का हैंडसेट देखकर समझ गए कि मोटा आसामी है। उन्होंने पिछले इनकमिंग नंबर पर डायल किया, तो उधर से बात करने पर पता चला कि युवक सेठ दीनानाथ का इकलौता चिराग है।
थानेदार साहब ने उन्हें दुर्घटना की जानकारी देते हुए कहा, “हम आपके बेटे को तत्काल पुलिस वाहन में लेकर जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं। आप भी सीधे अस्पताल पहुंचिए।”
वे उसे अपनी गाड़ी में डालकर लौटने लगे। लौटते समय उन्होंने देखा कि वह दुर्घटनाग्रस्त गरीब युवक का शरीर अब शांत हो चुका है।
“रामलाल, गाड़ी जल्दी भगाओ। सेठ जी से पहले हमें जिला अस्पताल पहुँचना है,ताकि हमारा अच्छा इंप्रेशन पड़े। सेठ जी बहुत भले और पैसे वाले हैं। तुम समझ रहे हो न ? फिर ये एक्सीडेन्टल डेथ का केस भी तो आएगा। लगता है अभी तक किसी आदमी की नजर नहीं पड़ी है इस पर।”
“जी।” रामलाल ने स्वीकृति में सिर हिलाते हुए गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़