–पुर्णिका—विजय कुमार पाण्डेय ‘प्यासा’
—पुर्णिका—
रख दूं कलम मै क्या ,ये बस का काम नही है।
लिखना लिखाना सच, में खाना आम नही है।
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लिखते अगर हो व्यंग्य तो कुछ क्रुद्ध हो जायें,
कहते बताते हैं ये कवि का काम नही है।
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सच है कमाना रोटीयां परिवार के लिए ,
बच्चों को देना खर्च कर में दाम नही है।
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रात दिन जगे औ लिखे मेहनत से छंद जो ,
उसको छपाये अन्य असल का नाम नही है।
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परेशानियां है क्यों यह लिखने के नाम पर,
डग – डग पे पड़े खार कहीं आराम नही है।
*** _’प्यासा’