पुराना है
लहज़ा -ए-क़ातिल शरिफ़ाना है
और फिर ज़ालीम ये ज़माना है ।
चाहता नहीं हूँ मैं कि तुझे चाहूँ
मगर दिल ये तेरा ही दीवाना है ।
मुद्दतों बाद मुस्कुरा रहे हैं आप
या दर्दोगम को हमसे छुपाना है ।
होगा कोई हम मे ही एब यारों
बस दिल को यही समझाना है।
इस दौर में इश्क़ इमानदारी से
अजय तुम्हारा पैंतरा पुराना है।
-अजय प्रसाद