#पुरखों को प्रणाम !
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★ #पुरखों को प्रणाम ! ★
गुलाटी परिवार को उस रात विवाह-समारोह में जाना था और संयोगवश मुझे रात उनके यहाँ ठहरना था। इसलिए वे लोग मुझे वीडियो कैसेट प्लेयर और कुछ कैसेट देकर चले गए।
मैंने #मदर इंडिया की कैसेट चलाई।
उन्नीस सौ सत्तावन में जब यह फिल्म आई थी मेरे पिता जी बुढलाडा रेलवे पुलिस चौकी के प्रमुख थे। मैं तब तीसरी कक्षा का विद्यार्थी था। हम सब भाई-बहनों में सबसे बड़े (स्वर्गीय) श्री सत्यपाल जी तब माताजी को यह फिल्म दिखाने लुधियाना लेकर गए थे।
पश्चिमी देश हमारी संस्कृति व सभ्यता से कितने अपरिचित व अनादर का भाव रखते हैं, इसका ज्वलंत उदाहरण है यह फिल्म। ‘ऑस्कर पुरुस्कार समिति’ ने इस कारण #मदर इंडिया को पुरुस्कार योग्य नहीं माना कि फिल्म की नायिका राधा ने गाँव के साहूकार के अनैतिक प्रस्ताव को स्वीकार क्यों नहीं किया?
गुलाटी परिवार जब वापिस लौटा, तभी फिल्म समाप्त हुई थी। और, मेरी आँखों में आँसू थे।
फिल्म के निर्माता-निर्देशक श्री महबूब खान इसी मिट्टी से जन्मे थे। अतः मैं उन्हें अपने पुरखों में मानता हूँ। और सबसे बड़ी बात, मेरी ही तरह वे भी जीवन की पाठशाला के ही विद्यार्थी थे। पारिवारिक-आर्थिक विषमताओं ने उन्हें भी औपचारिक शिक्षा का आनंद नहीं लेने दिया।
फिल्म विधा को मैं साहित्य की एक शाखा ही मानता हूँ। इसमें #प्यासा जैसी कविताएं भी रची गई हैं और #हकीकत जैसी कहानियां भी कही गई हैं। #शोले और #अचानक जैसे नाटक भी मंचित हुए हैं। सूची बहुत लंबी है, इसके उस ओर #महान दादा साहब फाल्के’ #राजा हरिश्चंद्र के साथ विराजमान हैं और इधर नए सशक्त हस्ताक्षर अनेक हैं।
आज #दादा साहब फाल्के का जन्मदिन है। उनकी धर्मपत्नी के गहने तक बिक गए थे कि कला जीवित रहे। वे भी मेरे पुरखों में हैं।
मेरा और मेरी लेखनी का प्रणाम सिने-विधा के पुरोधा को !
~ तीस एप्रिल ~
#वेदप्रकाश लाम्बा
२२१, रामपुरा, यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२