पुरखों के भिनसारे
पुरखो के भिनसारे
लाया रखा अमावस को भी ताकत से उजियारे पर ।
सबका हींसा एक बराबर पुरखो के भिनसारे पर ।
बना नही मैं पाया सीमा विस्तारों पर चला हुआ हूं छांव खुशी की नही मिली है मै अभाव में ढला हुआ हूं ।
चोटी मिली बाप के दम से बेटा खडा सहारे पर ।
व्यापक सोच नजरिया बदले मेरे चितन के स्तर को ढृढ निश्चय से रोक सका खुद गिरते हुये कहर को ।
तोड दिया उलझन की बेडी मेरे पांव किनारे पर ।
धरती के ऊपर जो फैला मेरा भी तो आसमान है ।
आंगन जंगल जल को लेकर इतना काहे परेशान है ।
मुंह का कौर बनाना हो तो आया तेरे व्दारे पर ।।
@सर्वाधिकार सुरक्षित
विनय पान्डेय