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27 May 2024 · 1 min read

पुरखों के गांव

पुरखों के गांव

मैं जब भी जाता हूॅ
शहर के चकाचौंध भरे
जीवन से दूर।
जंगल के करीब बसे
अपने ठांव
पुरखों के गांव।
आधुनिक चमक से
हटकर एक ताजगी भरे
हरे भरे जंगलों के पांव में
असीम शांति और सुकून
पाता हूं
अपनों के गांव।
फर्राटे भरतीं
बेशकीमती कारें ,
मशीन बन चुके मनुष्य
जहां नगर है।
विकास और आधुनिकता
के बीच उलझे हुए लोग
मशीन की तरह दौड़ रहे
दौड़ रहे बेतहाशा।
गांव आज भी दौड़ में पीछे है
प्रकृति की शीतल छांव
अपनों का दुख दर्द समझने
की परम्परा जो है
ठहरा है अपना गांव
खेत में उपज रहे अन्न
भरते हैं जनों के पेट।
जिजीविषा की दौड़ में
आज भी असीम सुख
देते हैं जंगल के गांव।
© मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
26/5/24
हाटा कुशीनगर उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
34 Views
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