#पुनर्भरण
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★ #पुनर्भरण ★
भीनी-भीनीसी पवन हो के कहीं आई है
मुखकँवल खिला है किसी का कि लट लहराई है
आशा चहकी है कहीं जैसे लता गाई है
श्रावण शुक्ल तीज मुस्काई है
मन मेरा रमता कहीं और जगत व्यस्त चलभाषी में
सच कौंधे है तड़ित-सा जगआभासी में
अवध में न मिल पाए तो मिलेंगे काशी में
श्यामल मेघ के हाथों पाती पहुंचाई है
श्रावण शुक्ल तीज मुस्काई है
पलकों की छांव में बसने को करे मनुहार मुझसे
मनकागद पर मसि-सा चाहे अधिकार मुझसे
चाहत हो किसी की कि चले नेहव्यापार मुझसे
इस वणज में बस देने की रीत चली आई है
श्रावण शुक्ल तीज मुस्काई है
घर की चौखट सूनी-सूनी कई रुत आईं गईं
मनमंदिर में जनम पिछले आरती गाई गई
प्रीत पगली के पांवों में पायल चाव की पहनाई गई
रीते तन मन में नीरव ने रार मचाई है
श्रावण शुक्ल तीज मुस्काई है
पुनर्भरण को उपस्थित मन मेरा कोई दाम कहे
दिनरैन सेवकाई कि मैत्री आठों याम कहे
रुक्मिण-सी गोरी पग धर आगे अभिनंदन श्याम ! कहे
बिरहा के प्राण पे बन आई है
श्रावण शुक्ल तीज मुस्काई है
आशा चहकी है कहीं जैसे लता गाई है . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२