**पी कर मय महका कोरा मन***
**पी कर मय महका कोरा मन***
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पी कर मय महका कोरा मन,
मदिरा से चहका सारा तन।
फूटी कौड़ी समझूँ राजा,
बेशक ना बचता कोई धन।
हाला होती गम पर भारी,
खुशियों से खिलता है कण-कण।
मदिरालय में मदिरा का प्याला,
कहता फिरता करलो थोड़ा फन।
उन्मुक्त नभ मे अनुरुक्त साधक,
घोड़ा फुदके जैसे कानन।
मनसीरत मस्ती में नाचे झूमें,
भँवरा मचले सरपट उपवन।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)