” पीड़ा किसे सुनाऊँ ” !!
होंठ सिले हैं मेरे देखो ,
पीड़ा किसे सुनाऊँ !!
इस पीड़ा में घुटता दम है ,
व्यक्त नहीं कर पाऊँ !!
अधरों का कम्पन खोया है ,
इनको भेद दिया है !
सूख गये आँखों के आँसूं ,
दिल को रेत दिया है !
अपनों ने ही रौंदे सपने ,
कैसे रुदन मचाऊँ !!
कभी चहकती चिड़िया जैसी ,
वह भी रास न आया !
कुचला आज घरौंदा मेरा ,
खूब कहर बरपाया !
कैसे मैं परवाज भरूँ अब ,
किसको पाँख दिखाऊँ !!
अगर कली मुरझाई है तो ,
खुशबू दम तोड़े है !
पीड़ा अगर बनी संगिनी ,
खुशियाँ संग छोड़े है !
बड़ा छली है समय यहाँ पर ,
कैसे मन समझाऊँ !!
भेदभाव की रेख मिटी ना ,
जन्म मिला है जबसे !
पीड़ा तो घुट्टी में मिली है ,
तपना है बस तप से !
इक दिन सोना बन कर निखरुं ,
ऐसा कुछ कर जाऊँ !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )