पीर
‘ पीर ‘
पड़ौस में शायद कोई उत्सव था । लाउड स्पीकर पर गीत बज रहा था– मैंने प्यार तुम्ही से किया है……फाल्गुनी गीत सुन झुंझला सी उठी ।
“किस तरह काम कर रही है तू आजकल!”
“क्यों क्या हुआ दीदी ?”
“मुझसे क्या पूछ रही है! खुद से ही पूछ ! बर्तनों में कितनी चिकनाई, फर्श पर धूल ! क्या है यह सब!”
फाल्गुनी के तल्खी भरे शब्द गहना के अंतर्मन को छील गए । इस घर में कितने बरसों से काम कर रही है वह ! मनोयोग से सभी काम करती है ।आज यही सुनने को रह गया था..! उदासी की छाया फैल गई चेहरे पर।
मालकिन सुजाता समझ रही थी उसकी परेशानी। गहना मात्र कोई बाई नहीं! वह तो हमारे सुख-दुख की साथिन है
किंतु बेटी के अवसाद से भी अनभिज्ञ नहीं वह ! मेरी सरल सौम्य फाल्गुनी..।
विचारशील सुजाता साफ-सफाई में मशगूल गहना को सांकेतिक भाषा में कुछ समझाने का प्रयास करने लगी ।
फाल्गुनी के ऑफिस जाते ही गहना की चुप्पी टूट गई ।
” हाँ भाभी माँ दीदी की हालत समझती हूँ मैं । मंगेतर की अचानक से मृत्यु हो जाना,कितना बड़ा दुख होता है । मन के इन घावों भरने में समय लगेगा भाभी माँ ।
– डिम्पल गौड़