पीर मिथ्या नहीं सत्य है यह कथा,
पीर मिथ्या नहीं सत्य है यह कथा,
हर सदी में उपेक्षित रहीं बेटियाँ।
कोख में ही कभी तो कभी सासरे,
ध्वंस इनका हुआ आज भी हो रहा।
आज भी यह जगत पुत्र के आसरे,
ध्वंस इनका हुआ आज भी हो रहा।
नन्दिनी के हृदय की यही है व्यथा,
हर सदी में उपेक्षित रहीं बेटियाँ।
साध गन्तव्य लें एक चेष्टा यहीं
किन्तु रोड़े अटकते रहे हर सदी।
शूल पथ में मिले चूँग नयनों तले,
तन चली ज्यों बहे नित्य कल-कल नदी।
व्यर्थ उद्योग वर्णित नहीं पटकथा,
हर सदी में उपेक्षित रहीं बेटियाँ।
भूल हैं, शूल है, या कि ये फूल हैं,
काल के गाल में प्रश्न हैं ये बड़े।
लेखनी थम गयी शब्द निःशब्द हैं
भाव बेसुध से लगते हैं मुर्छित पड़े।
इस जगत में अभी तक निभी जो प्रथा,
हर सदी में उपेक्षित रहीं बेटियाँ।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’