पीर – खर – बावर्ची – भिश्ती और मरीज़
उस दिन अखबार में एक इंटर कॉलेज के प्रधानाध्यापक द्वारा किसी एमडी डॉक्टर के पद की आपूर्ति के लिए एक विज्ञापन प्रसारित किया गया था । उसे पढ़कर जिज्ञासा वश मैं शाम को उस पते पर पहुंच गया । वहां पर एक बहुत ऊंचा और बड़ा लोहे का दो पल्लों में खुलने वाला दरवाज़ा लगा हुआ था । जब मैंने उस दरवाज़े को खटखटाया तो उसमें से एक चार इंच वर्गाकार के आकार की छोटी सी खिड़की खुली । उस खिड़की में से एक महिला ने झांक कर मुझसे पूछा
‘ किससे मिलना है ? ‘
मैंने कहा
‘ प्रिंसिपल साहब से । ‘
तब उसने दरवाजे के बगल में स्थित एक पूछताछ की खिड़की की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहां पूछताछ पटल पर इस बारे में पता कीजिए ।
मैं उसके उस बड़े गेट के सामने से खिसक कर बराबर वाली पूछताछ खिड़की के सामने खड़ा हो गया । तब तक वह महिला भी चलकर उस खिड़की के सामने आकर खड़ी हो गई । उसने मुझसे अपना वही प्रश्न फिर से दोहराया
‘ किससे मिलना है ? ‘
मैंने कहा
‘ प्रिंसिपल साहब से । ‘
तब वह महिला बोली कि बराबर वाले दरवाजे से अंदर आ कर दाहिने हाथ घूम कर सीधे सामने वाले कमरे में जाइए ।
मैं दरवाजे से होता हुआ दाहिने हाथ घूम कर सीधे सामने वाले कमरे में पहुंच गया जिसके ऊपर प्रधानाध्यापक की नाम की पट्टिका टंगी हुई थी । अब वही महिला प्रधानाध्यापक के कक्ष में मुख्य कुर्सी पर आकर विराजमान हो गई और बोली कहिए क्या काम है ?
मैंने उसके द्वारा स्थानीय अखबार में एक डॉक्टर की आवश्यकता के लिए दिए गए विज्ञापन का संदर्भ देते हुए उसके स्कूल में एक चिकित्सक के कार्य के विवरण के बारे में जानना चाहा , उसके उत्तर में जो उसने मुझे बताया वह मेरे के लिए विस्मयकारी था । वह बोली हम लोगों का स्कूल इंटर कॉलेज तक है और हम लोग ही पीएमटी की कोचिंग भी कराते हैं । हम चाहते हैं कि इस कोचिंग में हम कुछ ऐसे डॉक्टरों के द्वारा अपने विद्यार्थियों की कोचिंग करवाएं जो मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके आ चुके हों । अतः आपको हमारे यहां चिकित्सा कार्य नहीं अध्यापन का कार्य करना होगा । मैं उसके तर्क के आगे किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया और बाहर आ गया ।
रास्ते में मैं सोच रहा था वह प्रधानाध्यापिका महोदय अपने स्कूल में चपरासी से लेकर लिपिक और लिपिक से लेकर प्रबंधक एवं प्रधानाध्यापक का कार्य जब सब कुछ स्वयं उसी की जिम्मेदारी पर था तो वह मुझे मुख्य दरवाजे पर ही मेरी शंका का निवारण कर सकती थी ।
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इस कोरोना काल में कुछ दिन पहले सुबह मेरे पास मेरे मोबाइल पर एक फोन आया जिसमें किसी मृदुल कंठ की सम्राज्ञी महिला ने पूंछा
डॉक्टर साहब को दिखाना है , नंबर लगा दीजिये ।
मैंने उत्तर दिया नंबर लगवाने की आवश्यकता नहीं है । करोना कर्फ़्यू की वज़ह से ज्यादा भीड़ नहीं होती आप भी यदि अधिक ज़रूरी हो दिखाना तभी बाहर निकलें ।
इस पर वह बोली नहीं आप प्लीज़ नंबर लगा दीजिए ।
मैंने उसकी संतुष्टि के लिए पूछ लिया
आप का नाम , उम्र और फिर उसने जो बताया सिर्फ सुनने के पश्चात मैंने उसे दिन में 11 – 12 बजे आने के लिए कह दिया और उसे यह भी बताया कि इस समय ज्यादा भीड़ नहीं होती है ।
मेरी इन बातों को सुनकर वह बोली
क्या मैं जान सकती हूं मेरी बात किससे हो रही है और आपका परिचय क्या है ?
मुझे हंसी आ गई और हंसते हुए मैंने उसे बताया मैडम
मैं डॉक्टर साहब का पीर , खर , बावर्ची , भिश्ती , और ब ज़ुबान खुद डॉ पीके शुक्ला बोल रहा हूं । कोरोना कर्फ़्यू की वजह से स्टाफ बहुत कम है और किसी तरह से सारा काम खुद ही कर रहा हूं आप आएंगी तो सावधानियां बरतते हुए मैं आपको देख लूंगा ।
प्रत्युत्तर में उधर से खनखनाती हुई एक हंसी की आवाज़ के साथ मिलने का वादा करते हुए फोन कट गया ।