पीड़ित करती न तलवार की धार उतनी जितनी शब्द की कटुता कर जाती
पीड़ित करती न तलवार की धार उतनी जितनी शब्द की कटुता कर जाती है,
किसी वस्तु के लिए लोभ की भावना उतना न सताती जितना ईश्वर दर्शन की इच्छा की जिजीविषा मड़ोरती है।
भुजंग द्वारा उगली हुई विष आत्मा को कष्ट उतना न पहुँचा सकती जितना प्रियजन की गद्दारी घोंप जाती है।