पीड़ा
सुबह सुबह – एक अबोध बालक – की लेखनी के पुष्प –
मेरी पीड़ा तेरी पीड़ा से कोई अलग तो नहीं ।
फिर तेरी पीड़ा का एहसास मुझको होता क्यूँ नहीं ।
तुझको भी बनाया उसी परवरदिगार ने ।
मुझको भी बनाया उसी खुदा ने प्यार में ।
बोल न सखी –
फिर तेरी पीड़ा का एहसास मुझको होता क्यूँ नहीं ?
मैं डूबा अपने स्वार्थ में , मैं खोया अपने लाभ के ख्वाब में
हर वक्त ये मिल जाए वो मिल जाए ।
इसके सिवा सारी दुनिया भाड़ में जाए ।
ये गलत के सही –
बोल न सखी –
फिर तेरी पीड़ा का एहसास मुझको होता क्यूँ नहीं ?