पीड़ाएँ
पीड़ाएँ….
कठिनाइयों से भरे जीवन में, हर कदम पर साथ चलकर,
मेरे सफर के हर किरदार को स्वयं ही निभाते ये चले गई,
शिद्दत तो इतनी इसकी कि, हर रिश्तें में खुद ही ढल गई !!
पल-पल मर्म ह्रदय को सख्त बनाते चली गई..
साथी के स्थान पर, यही मेरी हमसफ़र बन गई !!
बढ़ते उम्र के हर पहलुओं पर तजुर्बे सिखाती रही..
कुछ इस तरह ये पीड़ाएँ, मेरी शिक्षिका भी बन गई !!
सुख की आस देकर, स्वयं ही दुःखो के ज़रिए मुझसे जुड़ी रही..
मित्रों की कमी क्या, जब यहीं हर लम्हें में मेरे साथ खड़ी रही !!
कष्ट , असहजता, विपत्तियों के साथ सदैव मुझसे मिलती रही..
एक मजबूत इंसान बनने की राह में, ये मेरी हमदर्द बन गई !!
~निहारिका वर्मा