*”पीओ नहीं शराब*
“पीओ नहीं शराब
छोड़ो पीना तानो सीना, जग में बनो नवाब।
पीओ नहीं जनाब, खराबी देती सदा शराब ।।
पीकरके बेहोश रहो तो, जग बोले धिक्कार ।
धन की बर्बादी भी होती, दुखी रहे परिवार।।
चंगी वाली हालत तंगी, का कर गई हिसाब।
पीओ नहीं जनाब, खराबी देती सदा शराब।1।
पीओगे सिगरेट तम्बाकू, खाकर गुटका पान।
काले पीले दांत करो, डालो जोखिम में जान।।
निकोटीन केन्सर का कारण, पढ़ लो जरा किताब।
पीओ नहीं जनाब, खराबी देती सदा शराब।2।
धूम्रपान ऑफिस में करना, माना गया गुनाह।
पीकर आने वाले को फिर, मिलती नहीं पनाह।।
न्यायालय में जाकर उसको, देना पड़े जवाब।
पीओ नहीं जनाब, खराबी देती सदा शराब।3।
होश कहाँ रहता जो पीता, रहता वो मदहोश।
नशा उतर जाने पर ढीला, पड़ने लगता जोश।।
नकली बब्बर शेर बनो मत, ओढो नहीं नकाब।
पीओ नहीं जनाब, खराबी देती सदा शराब।4।
पीटे जाते अक्सर पीकर, कर हरकत नादान।
दुनिया उसको कहे कबाबी, पाता जो अपमान।
बीड़ी गुटका पान तंबाकू, जीना करे खराब ।।
पीओ नहीं जनाब, खराबी देती सदा शराब।5।
पीना, पानी पैसा करना, टूटे कारोबार।
बोल शराबी दुनिया वाले, देते नहीं उधार।।
अब तो सुधरो भाई मेरे, बनना अगर नवाब।।
पीओ नहीं जनाब, खराबी देती सदा शराब।6।
-साहेबलाल दशरिये ‘सरल’
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