पिया साथ इतराय
पीत बसन देह पर , पिया साथ इतराय
गौर्ण अधरों रची जो , लाली अतिक सुहाय
सजे नैन जो अंजन से , देख घटा अब छाय
आतुर प्रेयस मिलन को,हिया से जियमिलाय
सोहे लम्बे केश कटि जो, गगन बीच हो मेघ
प्रसून गजरा केश में , दिखे केश में सेंघ
श्वेत दन्त की पंक्ति कर , रही पंक्षी सा खेल
आभा लगती देख जो , घन से घन का मेल
गोरी की दुति छवै जो,भाव गढे आकार
सौन्दर्य नख शीश तक ,कविता हो साकार