पिया बिन सूना री सावन लागे।
पिया बिन सूना री सावन लागे ।
सखी री मोहे घर आंगन न सुहावे
पिया बिन सूना री सावन लागे।
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फूल खिले मुरझाए पिया नहिं आए,
पपिहा पिहु पिहु कूक मचाए जिया अकुलाये
पुरवा अगन लगाए हिया झुलसाये,
रतिया बैरन निदिया न आवे
सखी री मोहे घर आंगन न सुहावे
पिया बिन सूना री सावन लागे।
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छम छम पायलिया पुकारे कंगना झनकारे
बदरवा घिर आये कारे कारे
नयनवा बरसत सांझ सकारे
कछु नहिं सूझे कछु नहिं भावे
सखी री मोहे घर आंगन न सुहावे पिया बिन सूना री सावन लागे।
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बरखा अगन लगाए सजा नहिं
जाए,
सखी री मोरी दरपन मनहिं डराये
काहे मोरे सजनवा न आये
कब वा विरियां आवे सजनवा
मोहे गले लगावे
सखी री मोहे घर आंगन न सुहावे पिया बिन सूना री सावन लागे।
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अनुराग दीक्षित