पिया की प्रतीक्षा में जगती रही
पिया की प्रतीक्षा में जगती रही,
रात भर करवटे बदलती रही।
स्वप्न भी हो गये अब स्वप्न,
जैसे कोई हो गया हो दफन।
कब आओगे मेरे प्यारे सजन ?
पूछ रहे है ये मेरे भीगे नयन।।
मन मेरा रात भर मचलता रहा,
तन मेरा अग्न से जलता रहा।
ये अग्न कैसे बुझेगी सनम ?
ये बात सोचता रहा मेरा मन,
अब तो आ जाओ मेरे सजन,
और न तड़फाओ अब सनम।।
जागती हूँ सारी सारी रतिया,
किससे कहूँ मन की बतिया।
रोते रोते सूज की अब अखियाँ,
पूछ रही रात की बात सखियाँ।
क्या जबाब दू उनको अब सनम ?
कुछ दिलासा तो दे जाओ सजन।।
दिन बीत जाता है रात बीतती नहीं,
गुमसुम हूँ कुछ किसी से कहती नहीं।
किससे कैसे कहूँ ये मन की व्यथा ?
आँसू ही बता देते है मन की व्यथा।
आँसू ही पोछने आ जाओ सनम,
कुछ तो होगा शांत मेरा ये मन।।
सुबह उठती हूँ होती है अलसाई आँखे,
मुहं धोती हूँ फिर भी रोती है ये आँखे।
आँसुओ से बहती रहती है इनसे धारा,
रूमाल भी नहीं दे पाता है इनको सहारा।
अब तो सहारा देने आ जाओ सनम,
शान्त हो जाये ये रोते मेरे नयन।।
अब तो दिन में भी बैचेन होने लगी हूँ,
रात के स्वपन भी दिन में बोने लगी हूँ।
लगता नहीं दिल ये दिन कैसे बिताऊ ?
मन मचलता रहता है इसे कैसे मनाऊ ?
अब तो मन को मनाने आ जाओ सनम,
दिन को रात बनाने आ जाओ सजन।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम