पितृ दिवस पर….
पितृ दिवस के शुभ अवसर पर प्रिय पिता की स्मृतियों को समर्पित मेरे द्वारा रचित चंद दोहे…
दिनभर के व्यापार का, पिता रचे मजमून।
घर-भर की रौनक पिता, पिता बिना सब सून।।
काँधे पर अपने बिठा, खूब करायी सैर।
छोटी सी भी चोट पर, सदा मनायी खैर।।
तुम मुखिया परिवार के, रखते सबका ध्यान।
मिली तुम्हारे नाम से, हम सबको पहचान।।
सबका ही हित साधते, किया न कभी फरेब।
पिता तुम्हें हम पूजते, तुम देवों के देव।।
चिर स्मरणीय तात तुम, सदा रहोगे याद ।
मन से मन में गूँजता, मूक बधिर संवाद।।
किया नहीं संग्रह कभी, फैले कभी न हाथ।
किस्मत से ठाने रहे, नहीं झुकाया माथ।।
ज्ञाता थे कानून के, देते राय मुफीद।
उनके कौशल ज्ञान के, सब जन हुए मुरीद।।
लालच कभी किया नहीं, सिद्ध किया न स्वार्थ।
राय सभी को मुफ्त दी, कर्म किए परमार्थ।।
भूले अपने शौक सब, हमें दिखाई राह।
पथ प्रशस्त सबका किया, देकर सही सलाह।।
धुर विरोधी भाग्य-कर्म, निभती कैसे प्रीत।
जिस पथ से भी तुम चले,भाग्य चला विपरीत।।
खुद्दारी ईमान सच, सहनशीलता न्याय।
गुँथे आप में इस तरह, हों जैसे पर्याय।।
आए कितने ताड़ने, धन-दौलत ले साथ।
सच से मुँह फेरा नहीं, सदा निभाया साथ।।
माँ पत्नी तनया बहन, दिया सभी को मान।
कोई तुमसे सीखता, नारी का सम्मान।।
सीखा तुमसे ही प्रथम, अनुशासन का अर्थ।
अभेद्य नहीं था कुछ तुम्हें, तुम थे सर्व समर्थ।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद