पितृ दिवस पर दोहा सप्तक. . . . .
पितृ दिवस पर दोहा सप्तक. . . . .
छाया बन कर धूप में,आता जिसका हाथ।
कठिन समय में वो पिता,सदा निभाता साथ।।
बरगद है तो छाँव है, वरना तपती धूप।
पिताहीन जीवन लगे, जैसे गहरा कूप ।।
घोड़ा बन कर पुत्र का, खेले उसके साथ।
हर मुश्किल में पुत्र के, पापा बनते पाथ ।।
प्राणों से प्यारी लगे, पापा को संतान।
जीवन के हर मर्म का, दे वो सच्चा ज्ञान।।
पिता सारथी पुत्र के, बनते सदा सहाय।
हर मुश्किल का वो करें , तुरंत उचित उपाय।।
पुत्र पिता का स्वप्न है, उसकी है अभिलाष ।
कठिन काल में पुत्र का, पिता बने आकाश ।।
जरा काल में देखता, पिता पुत्र की ओर ।
जीवन की इस साँझ में, आजा बनकर भोर ।।
सुशील सरना/16-6-24
मौलिक एवं अप्रकाशित