पितु बचन मान कर बनवास चले रघुराई।
पितु बचन मान कर बनवास चले रघुराई।
बिताए चौदह वर्ष संग सिय लखन भाई।।
संग कपि भालुओं के पा के विजय लंका पर।
अवध में आए राम और दिवाली आई।।
देखकर प्रेम अयोध्या का राम मुसकाए।
देख कर नेम भरत भाई का थोड़ा सकुचाये।।
तपस्वी भेष भरत का जो देखा राघव ने।
प्रेम की गंगा बही और दिवाली आई।।
गले लगाया मां कौशल्या ने आगे बढ़ कर।
दिया आशीष सुमित्रा ने पुत्र से बढ़कर।।
अश्रुपूरित नयन सा देख कैकेई मां को।
राम चरणों में गिरे कह उठे माई माई।।
“कश्यप”