$$पिता$$
पिता : कुछ मुक्तक
बाल मेरे पक गये होंठ अब सील गये //
गाल मेरे सूख गये दाँत अब हिल गये //
आँखें धँस गईं आईना फिर चढ़ गया,,
चमड़ी झूल गयीं हाड़ अब हिल गये //
बेटों ने मुझे मेरी अब औक़ात बताई //
मुझे मेरी सही राह व मंज़िल दिखाई //
यही दिनोदशा अब देखना बाकी था,,
बेटियों ने भी अपनी बेबसी जताई //
सरकार की नज़रों में मैं जब आया //
पिता से मुझे “बुढ़ऊ” झट बनाया //
पत्नी को देके परिवार की मुखिआई,,
मुझको कुटुंब का पिछलग्गू बनाया //
पीकर पीड़ा हाय मैं पिता कहलाया //
पत्नी, बेटी, बेटा सबने मुझे सताया //
कुटुम्ब का बोझ मुझ पर डाल कर,,
खुदाने ऊपर से देखा ठहाका लगाया //
दिनेश एल० “जैहिंद”
जयथर, मशरक