पिता
हाइकु, पिता__
जनक सुता
पाए राम से वर
खुश हैं पिता!
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सुनहुं तात!
जग पसारे हाथ
पुरी का भात
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नभ में रवि
हम बच्चों के लिए
पिता की छवि
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पिता के कांधे
था महफूज स्थान
विराजमान
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नहीं अमीर
मांगें पूरी करते
मेरे पिताजी!
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मार्ग दर्शक
जीना है सिखलाते
खूब पिताजी!
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हिमालय से
पिता! भी टूट जाते
ग्लेशियर से
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पिता आकाश
दूर क्षितिज मां से
मिलते गले
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बड़े बुजुर्ग!
घर के कल्प वृक्ष,
चाहो सो पाओ
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अजन्मे शिशु
ढ़ेरों शुभ आशीष
प्रेम प्रतीक
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बागबां पिता
पसीने से सींचता /द्रवित होकर भी
दिखा ना पाता
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मांग आए हैं
एक और मन्नत
बांधा है धागा
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दुआ करने
पिता गए मंदिर
प्रभु हैं वहां
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खत्म ना होता
आशीर्वादों का सिला
क्योंकि वो पिता
_ मनु वाशिष्ठ