“पिता”
अब पिता नहीं है
फिर भी दिख जाते हैं वह,
उनके रोपे गुलमोहर के
झक्क लाल फूलों मे।
हवा से सरसराते
बोगनवेलिया के झाड़ मे
वह फिर भी दिख जाते हैं
माँ की बातों मे,
प्रौढ़ होते भाई की मन्द मुस्कान मे।
अब पिता नहीं हैं,
फिर भी वह हैं
नैहर की हर शै मे….।
©निकीपुष्कर