पिता
पिता
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वह होता है भाग्यवान जो, पितु के पद को पाता है ।
स्वयं ईश ही पिता रूप धर, जीवन को सरसाता है ।।
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जिसके सिर पर पितु का साया, उसे न दुःख सताता है,
पिता करे संरक्षण उसका, हर दायित्व उठाता है,
पालन पोषण शिक्षण देकर, जीवन योग्य बनाता है ।
स्वयं ईश ही पिता रूप धर, जीवन को सरसाता है ।।(1)
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पिता हमारा जीवन दाता, इसीलिये ईश्वर सम है,
संघर्षों से लड़ने का भी, केवल पितु में ही दम है ,
आँच न संतति पर आती है, सारा कष्ट उठाता है
स्वयं ईश ही पिता रूप धर, जीवन को सरसाता है ।।(2)
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छप्पर बिना न बने झोंपड़ी, छत के बिना मकान नहीं ,
जिस दिन उठता पितु का साया, लगता सिर पर छान नहीं,
स्वार्थ हीन जो कर्म करे नित, अपना धर्म निभाता है ।
स्वयं ईश ही पिता रूप धर, जीवन को सरसाता है ।।(3)
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हृदय पिता का नरियल जैसा, नेह- नीर अंतस छलके,
उसका जीवन व्यर्थ, पिता के दृग से यदि आँसू ढलके ,
ठौर न उसको मिले नरक में, जो पितु काम न आता है ।
स्वयं ईश ही पिता रूप धर, जीवन को सरसाता है ।।(4)
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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