पिता जी
तुम
मुझे अक्सर याद आते हो
तुम मुझे हर पल याद आते हो
जब कभी उदास होता हूं
किसी कारण हताश होता हूं
मुझे मौन देखकर
अपने में खोया जानकर
तुम्हारा कंधे पर हाथ रखना
और
कहना-“परेशान क्यों हो…?
बात क्या है…?”
हिम्मत बनाता था मुझे
ठोकर खाकर जब भी गिरता
मां की ममता परेशान हो जाती
परंतु
तुम पौरुष की सीख देते थे
ज्ञान को जीवन में
संभल बनाने की बात कहते थे
आज भी वही घर है
परिवेश भी वही है
लेकिन
आज एक आंगन के तीन हो गए हैं
सभी भाई तुम्हारी तरह
सुविधा संपन्न हो गए हैं ,
परंतु अब मैं जब भी उदास होता हूं
तो सच
हिम्मत बंधने वाला हाथ
अब मेरे कंधे पर नहीं होता ,
घर तरह-तरह की मिठाइयां
आती है आज भी
परंतु
तनख्वाह मिलने पर
महीने की पहली तारीख को
तुम्हारी लाई मिठाइयों में
जो मिठास होती थी
मेरे घर की मिठाइयों में पिताजी
वह मिठास नहीं होती है
न जाने क्यों
वह मिठास नहीं होती है।